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________________ १० श्रीमद्विजयनंदसूरि कृत, रोग जारा जी।म ॥६॥ तुम ही निरंजन नये अविनाशी । अब सेवक की वारा जी ॥ म ॥७॥ हुं अनाथ तुम त्रिजुवननाथा । वेग करो मुफ सारा जी ॥ म०॥७॥ तुम पूरण गुण प्रजुता बाजे। बातमरामाधारा जी। म॥ए॥ इति श्री पद्मप्रन जिन स्तवनम् ॥ ६॥ श्रीसुपार्श्वनाथ जिन स्तवन मंदिर पधारो मारा पूज जी॥ ए देशी ॥ श्री सुपास मुफ बीनती।अब मानो दी. नदयाल जी। तरण तारण तुम बिरुद बै। नगत बबल किरपाल जी। श्रीसु० ॥१॥ अक्षर नाग अनंत में। चेतनता मुफ बोरजी। करम नरम बाया महा जिन । कीनो तम महा घोर जी। श्रीसु॥२॥घन घटा बादित रवि जिसो।तिसो रह्यो ज्ञान उजासजी। किरपा करोजोमुजजणी थायेपूरण ब्रह्म प्रकासं जी। श्रीसु॥३॥ विन ही .
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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