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स्तवनावली.
११३ ॥ अथ श्रीचंप्रनु जिन स्तवन ।।
॥राग माढ । जलानी देशी ॥ ॥ जीयारे चंडप्रचजिनी मुरती मोहन गारीरे जयकारी माहाराज चंप्रनु जिनी मुरती मोहनगारीरे दयाल । - कणी ॥ जीयारे चंदवदन प्रन्नु मुखकी शोना सारीरे॥जय ॥ चं॥॥ जीयारे शमरसजरियां नेत्रयुगलकी जोडी रे ॥ जय ॥ स॥३॥ जीयारेप्रलुपद लीनो कामनीको संग बोडीरे ॥जय ॥ प्र० ॥४॥ जीयारे अब मे प्रजुजीसें अरज करूं कर जोमीरे ॥ जय ॥ अ॥५॥जीयारे चंचलचितडंकीण विध राखं कालीरे ॥ जय॥ चं० ॥६॥ जीयारे फिर फिर बांधे पाप करमकी क्यारीरे ॥ जय ॥ फिर ॥७॥ जीयारे नेक नजर करीनाथ निहारोधारीरे ॥ जय ॥ ने॥ज॥ जीयारे तुम चरणाकीसेवा द्यो मुज प्यारीरे ॥ जय ॥तु ॥ ए॥