________________
।
११४ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, जियारे जिम मुज मनडुं अंतर घटमें श्रावेरे ॥ जय ॥ जिम ॥ १० ॥ जियारे आनंद मंगल वीरविजयकुंथावेरे ॥जय॥श्रा०॥११ . ॥ इति श्रीचंअप्रजुजिन स्तवन ॥
॥अथ श्रीसुविधिजिन स्तवन॥ ॥राग ध्रुपद ॥श्राश्नार करकर श्रृंगार
॥ए देशी॥ श्रीसुविधिनाथ प्रजु मोद साथ, में नयो अनाथ मुज पकड हाथ हुँ पतित नाथ धरधर करलीजो ॥ श्री ॥१॥ सीरमोहराट तिन जगमे हाक, सब जग विख्यात जे न धरे धाक करे फुःखनो दाट जग वश करतीनो ॥२॥ एक अजब बात श्नमोहराट, कीये तुमने घात मुखमारी लात गई इनकी लाज. थरथर करदीनो ॥ श्री० ॥३॥ घटअंतरबात कुण जाणे नाथ, मुजे मोहराट दियो कुःख अगाध कीयो बहु उचाट मुरगति दुःख दिनो