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स्तवनावली.
॥६॥ श्रातम श्रानंद रसके दाता। वीरविजय हितकारी ॥ मे ॥1॥७॥
. ॥ इति श्रीसुमतिजिन स्तवन । ॥अथ श्रीपद्मप्रनु जिन स्तवन।
॥रागरेखता ॥ खलक एक रैनका सुपना ए देशी. ॥ पद्मप्र प्राणसे प्यारा । बगेमावो कर्मनी धारा।करमफंद तोडवा धोरी|प्रजुजीसे अर्ज हे मोरी ॥ प० ॥१॥ लघुवय एकथेजीया।मुक्तिमेवास तुम कीया॥नजाणीपीर ते मोरी। प्रज्जु अब खेंचले दोरी ॥ प० ॥ ॥॥ विषय सुखमानी मो मनमे गये सव काल गफलतमें॥नारक मुख वेदना नारी।नीकलवा ना रहीबारी प॥३॥ पर वसदिनताकीनी। पापकी पोट सीर लीनी॥ जक्ती नही जाणी तुम केरीरह्यो निशदिन मःख घेरी॥प० ॥४॥जनविधवीनती तोरी । करुमे दोय करजोडी ॥