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श्री मद्दीर विजयोपाध्याय कृत,
मायो । नहीं तन धन नेह निवारयो । अबपारस परसंग पामी । नहीं वीरविजयकुं खामी ॥ अ ॥ ५ ॥ इति श्री अजीनंदन जिन स्तवन ॥
॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवन. ॥ ॥ राग गोमी ॥
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सुमति जिनेश्वर स्वामी । मेरे प्रभु सुमति जिनेश्वर स्वामी । झांकणी । भ्रमत भ्रमत जग जाल फस्यो मे दरिसप पुन्ये पामी ॥ मे० ॥ प्रभु ॥ १ ॥ अष्ट करमके ऊगडे जीती सुमति सुनाम कहानी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ २ ॥ अंतरगतकी पिंड हमारी तुं जाणे विसरामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ बा - लख्याल मे तुमही न जाने । रोग निकंदन कामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ जग चिंतामणि सुरतरु सरिखो नीरखी गद सब वामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ५ ॥ तारण तरण बे बिरुद तुमारो । जवजय भंजनहारी ॥ मे ॥ प्रभु