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स्तवनावली.
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की लाज ॥ चि ॥प्रजु॥५॥आतम श्रानंद प्रजुजी दीजो । वीरविजयको आज॥ चि॥ प्रन्तु ॥६॥ इति श्री संजव जिन स्तवन॥ ॥अथ श्री अनीनंदन जिन स्तवन.॥
॥राग छुमरीका नेद ॥ ॥ श्रनिनंदन स्वामी हमारा । प्रजु नव उखनंजन हारा। एकुनियां मुखकी धारा। प्रनु इनसे करो निस्तारा ॥ अ॥१॥ हुँ कुमता कुटिल जरमायो । पुरनिती करी उःखपायो । अब शरण लीयो हे थारो। मुजे जवजल पार उतारो ॥ अ॥॥ प्रजु शीष हैये नहीं धारी। उरगतीमें फुःख लीयो नारी।श्नकर्मोकी गती न्यारी।कीये बेरवेर खुवारी ॥॥३तुमे कुरुणावंत कहावो । जग तारक बिरुद धरावो । मेरी अरजीनो ए दावो ।श्न फुःखसे क्युं न बोमावो ॥ अ॥४॥ मे विरथा जनम ग
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