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श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत,
षटपट सब पुर जार । जटपट श्रबमुज कोतार । आनंद सुखकारी॥ ध्याउं ॥ ॥३॥ प्रज्नु जई कीयो मुक्तिवास सेवक कुंपण एही श्राश ॥ श्रातम आनंद कर विलास । वीरविजयकुं नारी ॥ध्या॥४॥ ॥ इति श्री अजित जिन स्तवन ।
॥ अथ श्री संनव जिन स्तवन. ॥ ॥ राग महावीरचरणमे जाय ए देशी॥ _ प्रनु संजव जिन सुख दाई । चित्तमे लागीरहो ॥प्र॥ चि ॥श्रांकणी।मुख संनव में जुर कीयोहै । सुखसंजव थयो
आज ॥ चि ॥ प्रज्जु ॥१॥ वेद संसार श्रसार सारहै । तुम शरणा महाराज ॥ चि ॥ प्रजु ॥२॥ मोह सेन सब चुरलीयोहै। शीवपुर केरो राज ॥ चि ॥ प्रजु ॥ ॥३॥ दिन हिन दुखियो मुजदेखी । सारो सेवकको काज ॥ चि ॥ प्रतु ॥४॥ मोदमोह सब नाश करीने । राखो सेवक