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७ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, एतो जनम जनम मुख डीनो ॥ सु॥ श्रांकणी॥ कुमति कुटल संग दूर निवारी। सुमति सुगुण रस नीनो । सुमतिनाथ जिन मंत्र सुण्यो है।मोह नींद नश्खीनो सु० ॥१॥करम परजंक बंक अतिसिज्या। मोह मूढता दीनो । निज गुण नूल रच्यो परगुण में। जनममरण दुख लीनो ॥सु ॥॥ अब तुम नाम प्रनंजन प्रगट्यो । मोह अत्र बय कीनो । मूढ अज्ञान अविरती एतो । मूल बीन नये तीनों ॥ सु॥३॥ मन चंचल अतिघ्रामक मेरो। तुमगुण मकरंद पीनो । अवरदेव सब दूर तजत है। सुमति गुपति चित दीनो ॥ सु० ॥४॥ मात तात तिरिया सुत नाई। तन धन तरुण नवीनो।ए सब मोह जाल की माया। इन संग नयो है मलीनो ॥ सु० ॥५॥ दरशण ज्ञान चारित्र तीनो । निज गुण धन हर लीनो।सुमति प्यारी नई रखवारी । विषय इंशी नश्