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चतुर्विशति जिनस्तवन.
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करताराजी ॥ ॥२॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख लीना।मेट मिथ्यात अंधारा। अमर अटल फुन अगुरुलघुको । धारा सारा २ अनंत बल नाराजी॥ अ० ॥३॥ वंध उदय विन निर्मल जोति । सत्ताकरी सब गरा।निज खरूप त्रय रत्न बिराजे। बाजे राजे ५ आनंद अपाराजी । अन • ॥४॥ ज्ञान वीर्य सुख जीतव धारी। मदन नूत जिन गारा । त्रिजुवन में जस गावत तेरा । जगखामी प्राणप्याराजी। अ॥ ५ ॥ निज आतम गुण धारी प्रजु जी । सकल जगत् सुखकारा । आनंद चंद जिनेसर मेरा । तेरा चेरा ५ हुँ सुख काराजी ॥ ॥६॥ इति श्री अभिनंदन जिनस्तवनम् ॥४॥
श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन । नाथ कैसे गज के फंद बुमाये ॥ ए देशी ॥ सुमति जिन तुम चरणे चित. दीनो।