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तृतीयो वर्गः ]
मापाटीकासहितम् ।
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परिक्षिप्तो यथा धन्यस्तथा । द्वात्रिंशद् दातानि यावदुपरि प्रासादावतंशके विहरति । तस्मिन् काले तस्मिन् समये समवशरणम् । यथा धन्यस्तथा सुनक्षत्रोऽपि निर्गतः । यथा स्त्यावत्यापुत्रस्य तथा निष्क्रमणम् । यावदनगारो जात ईर्या समितो यावद् ब्रह्मचारी । ततो नु स सुनक्षत्रोऽनगारो यस्मिन्नेव दिवसे श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके मुण्डो भूत्वा प्रत्रजितस्तस्मिन्नेव दिवसेऽभिग्रहम् । तथैव यावद् बिलमिव आहारयति । बहिर्जन। । पद - विहारं विहरति । एकादशाङ्गान्यधीते, संयमेन तपसात्मानं भावयन् विहरति । ततो नु स सुनक्षत्र औदारेण यथा स्कन्दकः ।
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प्रतिपादन किया है
पदार्थान्वयः --- जति - यदि - पूर्ववत् वाक्यालङ्कार के लिए है भंते ! - हे भगवन् ! उक्खेवत्र-आक्षेप से जान लेना चाहिए अर्थात् प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो द्वितीय आदि का क्या अर्थ इत्यादि पूर्व सूत्रों से आक्षेप कर लेना चाहिए | एवं - इस प्रकार खलु - - निश्चय से जंबू - हे जम्बू | तेणं कालेणं - उस काल और तेणं समरणं - उस समय काकंदीएकाकन्दी गरीए - नगरी में भद्दा - भद्रा णामं - नाम वाली सत्थवाही - सार्थवाहिनी परिवसति - रहती थी जो अड्डा० सर्वसम्पन्ना थी । णं पूर्ववत् तीसे- उस भद्दाएभद्रा सत्यवाहीए - सार्थ वाहिनी का पुत्ते - पुत्र सुक्खत्तं - सुनक्षत्र णामं - नाम वाला दारए - बालक होत्था - हुआ जो ग्रहीण० - पांचों इन्द्रियो से परिपूर्ण था और जावयावत् सुरू - सुरूप था पंचधातिपरिक्खित्ते - वह पांच धायों के लालन-पालन मे था जहा - जैसे धरणे - धन्यकुमार के हुए थे इसी प्रकार बत्तीसाओ - वत्तीम दात्रकन्याओं से विवाह हुए और उनके पितृ-गृह से बत्तीस दहेज आये । जाव - यावत् उप्पि - ३ - ऊपर पासायवडेंसए सर्वश्रेष्ठ प्रासाद में सुखों का अनुभव करता हुआ विहरति- विचरता था | तेणं काले २ - उस काल और उम समय में समोसरणंश्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उस नगरी के बाहर सहस्रावन उद्यान मे विराजमान हुए । जहा - जिस प्रकार धण्णो - धन्य कुमार निकला था तहा - उसी प्रकार