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________________ तृतीयो वर्गः] भाषाटीकासहितम्। [४७ पदार्थान्वयः-तते णं-तत्पश्चात् से-वह धन्ने-धन्य अणगारे-अनगार पढम-पहले छट्ठक्खमणपारणगंसि-षष्ठ-व्रत (वेले ) के पारण में पढमाए-पहली पोरसीए-पौरुषी मे सज्झायं-स्वाध्याय करेति-करता है जहा-जैसे गोतमसामीगोतम स्वामी ने तहेव-उसी प्रकार धन्य अनगार ने आपुच्छति-पूछा । जाव-यावत् आज्ञा प्राप्त कर जेणेव-जहां कायंदी-काकन्दी णगरी-नगरी है तेणेव-उसी स्थान पर उवा० २-आता है और आकर कायंदीणगरीए-काकन्दी नगरी मे उच्च०ऊंच, नीच और मध्यम कुलों मे अडमाणे-भिक्षा के लिये फिरता हुआ आयंविलंआचाम्ल के लिये जाव-यावत् णावखंति-जिस आहार को कोई नहीं चाहता उसी को ग्रहण करता है । तते णं-इसके बाद से वह धने-धन्य अणगारे-अनगार ताए-उस आहार की अन्भुज्जताए-उद्यम वाली पयययाए-प्रकृष्ट यत्न वाली पयत्ताए-गुरुओं से आज्ञप्त पग्गहियाए-उत्साह के साथ स्वीकार की हुई एसणाएएपणा-ममिति से गवेपणा करता हुआ जति-यदि भत्तं-भात लभति-मिलता है पाणं-पानी ण लभति-नहीं मिलता है अह-अथवा पाणं-पानी मिलता है तो भत्तं-भात न लभति-नहीं मिलता। तते-इसके अनन्तर णं-पूर्ववत से-वह धनेधन्य अणगारे-अनगार अदीणो-दीनता से रहित अविमणे अशून्य अर्थात् प्रसन्नचित्त से अकलुसे-क्रोध आदि कलुपों से रहित अविसादी-विपाद-रहित अपरितंतजोगी-अविश्रान्त अर्थात् निरन्तर समाधि-युक्त जयण-प्राप्त योगों मे उद्यम करने वाला घडण-अप्राप्त योगों की प्राप्ति के लिये उद्यम करने वाला जोगमन आदि इन्द्रियों का संयम करने वाला चरित्ते-जिसका चरित्र था अहापजत्तंवह जो कुछ भी पर्याप्त समुदाणं-भिक्षा-वृत्ति से प्राप्त होता था उसको पडिगाहेति २-ग्रहण करता है और ग्रहण कर काकंदीओ-काकन्दी णगरीतो-नगरी से पडिणिक्वमति २-निकलता है और फिर निकल कर जहा-जैसे गोतमे-गोतम स्वामी जाव-यावत पडिदंसेति२-श्री भगवान महावीर स्वामी को भिक्षा-वृत्ति से एकत्रित आहार दिखाता है और दिग्याकर तते-इसके बाद णं-पूर्ववत से-बह धन्ने-धन्य अणगारे-अनगार समणेणं-श्रमण भग-भगवान महावीर स्वामी की अन्भणुन्नाते समाणे-आजा प्राम होने अमुच्छिते-मूछा से रहिन जाव-यावन उस भिक्षा-वृत्ति से प्राप्त किये हुए भोजन को अणझोववरण-गग और द्रुप से रहित होकर अर्धान अनासक्त भाव से पएणगभृतणं-मर्प के ममान मुग मे
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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