________________
तृतीया वर्गः ] भाषार्टीकामहिनम् ।
[३७ जानि और गवर्ग के लोगों में किसी से किसी प्रकार भी परिभृत (तिरस्कृत) अर्थान कम नहीं थी । उम मद्रा सार्थवाहिनी का धन्य नाम का एक सर्वाङ्ग-पूर्ण और रूपवान पुत्र था। उसके पालन-पोषण करने के लिए पांच घाइयां नियन थीं । जर्म-एक का काम केवल उमको दूध पिलाना ही रहना था । शेप वर्णन जिम प्रकार महावन कुमार का है उसी प्रकार से जानना चाहिए । इस प्रकार धन्य कुमार (धीरे २) मब मांगों को भागने में समर्थ हो गया ।
टीका-इम मृत्र में श्री मुधमा म्यामी नम्वृ स्वामी के प्रश्न के उत्तर में नृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का वर्णन करते हैं । यह अध्ययन धन्य कुमार के जीवन-वृनान्न के विषय में है । वही मुधा स्वामी ने जम्वृ म्वामी को मुनाया है।
हम अध्ययन के पढ़ने से हमें उस समय की श्री जाति की उन्नन अवस्था का पना लगता है । उस समय त्रियां आज-कल के समान पुरुषों के ऊपर ही निर्भर नहीं रहती थी, किन्तु स्वयं उनकी बगवर्ग में व्यापार आदि बड़े २ कार्य करनी थीं । उन्हें व्यापार आदि के विषय में मब नरह का पूरा नान होना था। देशान्तगे में भी उनका व्यापार-बाणिज्य आदि का कार्य चलना था। यहां भद्रा नाम की नी मार्थवाही का काम स्वयं करनी थी और इस पर मी विशेषता यह कि अपनी जानि के लोगों में वह किसी से कम न थी । यह बात उम उन्नति के गियर पहुंची हुई स्त्री-ममाज का चित्र हमारी ऑग्यों के मामने ग्यींचनी है । इसके अनिरिक्त हम अन्य जन शाम्रों के अध्ययन में निश्चय होता है कि उस समय त्रियों के अधिकार पुरुषों के अधिकारों में किमी अंश में भी कम न थे । उम समय की स्रियां बाम्नब में अाङ्गिनियां थीं । उन्होंने पुरुषों के समान ही मोक्षगमन भी किया । अनः शूद्र जाति और स्त्रियों को क्षुद्र मानने वालों को भ्रान्ति निवारण के लिए एक बार जैन शाम्रों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए ।
अब मृत्रकार पूर्व मूत्र से ही सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं :
तत णं सा भदा सत्यवाही धन्नं दारयं उम्मुक्क-वालभावं जाव भोग-समत्थं वावि जाणेत्ता बत्तीसं पासायघडिंसते कारेति अब्भुगत-मुस्सिते जाव तेसिं मझे भवणं