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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ।
[ तृतीयो वर्गः
अणेग-खंभ-सय-सन्निविदूं | जाव बत्तीसाए इब्भवर-कन्न गाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेति २ बत्तिसाओ दाओ । जाव उप्पि पासाय० फुट्टे हि विहरति ।
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ततो तु सा भद्रा सार्थवाहिनी धन्यं दारकमुन्मुक्त- बालभावं यावद्भोग समर्थं वापि ज्ञात्वा द्वात्रिंशत्प्रासादावतंसकानि कारयत्यभ्युद्गतोच्छ्रितानि । तेषां मध्ये भवनमनेकस्तम्भुशतसन्निविष्टम् । यावद् द्वात्रिंशदिभ्यवर-कन्यकानामेकेन दिवसेन पाणि ग्राहयति । द्वात्रिंशद् दातानि । यावदुपरि प्रासादे स्फुटद्भिर्विहरति ।
पदार्थान्वयः -- तते - इसके अनन्तर - वाक्यालङ्कार के लिये है सा- वह भद्दा - भद्रा सत्थवाही - सार्थवाहिनी धन्नं-धन्य दारयं - बालक को उम्मुकबालभावंबालकपन से अतिक्रान्त और जाव - यावत् भोगसमत्थं-भोगों के उपभोग करने में समर्थ जागेत्ता- जानकर बत्तीसं-बत्तीस भुगतमुस्सिते - बहुत बड़े और ऊँचे पासायचडिंसते - श्रेष्ठ प्रासाद (महल) कारेति - बनवाती है । जाव - यावत् तेसिं- उनके मज्झ मध्य मे अगखंभसयसन्निवि-अनेक सैकड़ों स्तम्भों से युक्त भवणं - एक भवन बनवाया । जाव-यावत् उसने बत्तीसाए - बत्तीस इन्भवरकन्नगाणं - श्रेष्ठ श्रेष्ठियों की कन्याओं के साथ एगदिवसेणं- - एक ही दिन पाणि गिण्हावेति - पाणिग्रहण करवाया इनके साथ बत्तीसा - बत्तीस दाश्रो दास, दासी, धन और धान्य आदि दहेज आए । जाव - यावत् वह धन्य कुमार उप्पि - ऊपर पासाय० - श्रेष्ठ महलों मे फुर्डे - तेहि-जोर २ से बजते हुए मृदङ्ग आदि वाद्यों के नाद से युक्त उन महलों मे जावयावत् पांच प्रकार के मनुष्य सुखों का अनुभव करते हुए विहरति- विचरता है । मूलार्थ --- इसके अनन्तर उस भद्रा सार्थवाहिनी ने धन्य कुमार को बालकपन से मुक्त और सब तरह के भोगों को भोगने में समर्थ जानकर वत्तीम बडे २ अत्यन्त ऊंचे और श्रेष्ठ भवन बनवाये । उनके मध्य में एक सैकड़ों स्तम्भों से युक्त भवन बनवाया। फिर बत्तीस श्रेष्ठ कुलों की कन्याओं से एक