________________
३६ ]
अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ।
[तृतीयो वर्ग.
~
~
~
~
~
A
N
A
~
~
~
~
~
~
के उत्तर में कहते हैं कि जंबू-हे जम्बू ' तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणंउस समय काकंदी काकन्दी णाम-नाम वाली णगरी-नगरी होत्था-थी और वह रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा-ऊँचे २ भवनों से युक्त, निर्भय तथा धन-धान्य से पूर्ण थी । उसके बाहर सहसंबवने-सहस्राम्रवन नाम वाला उजाणे-उद्यान था सव्वोदुए-सब ऋतुओं के पुष्प और फलों से युक्त था । उस नगरी मे जितसत्तू-जितशत्रु नाम वाला राया-राजा राज्य करता था तत्थ-उस काकंदीए-काकन्दी नाम नगरीए-नगरी में भद्दा णाम-भद्रा नाम वाली सत्थवाही-सार्थवाहिनी परिवसइनिवास करती थी । अढा-वह ऋद्धिमती थी और जाव-यावत् अपरिभूत्राअपनी जाति और बराबरी के लोगों मे धन आदि से अपरिभूत अर्थात् किसी से कम न थी । तीसे-उस भद्दाए-भद्रा सत्थवाहीए-सार्थवाहिनी का पुत्ते-पुत्र धनेधन्य नाम-नाम वाला दारए-बालक होत्था-था जो अहीणे-किसी इन्द्रिय से मी हीन नहीं था अर्थात् जिसकी सब इन्द्रियां परिपूर्ण थीं और सुरूवे-सुरूप था पंच-धाती-परिगहिते-जो पांच धात्रियों (धाइयों) से परिगृहीत था तं-जैसे-खीरधाई-एक धाई दूध पिलाने के लिए नियत थी और शेष जैसा महब्बले-'भगवती सूत्र' मे महावल कुमार का वर्णन है उसी के समान जानना चाहिए जाव-यावत् वावत्तरि-बहत्तर कलातो-कलाएं अहीए-अध्ययन की जाव-यावत् जाते-यह वालक धीरे धीरे अलंभोग-समत्थे यावि-सब तरह के भोगों का उपभोग करने मे समर्थ होत्था हो गया।
मूलार्थ-हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने, जो मुक्ति को प्रास हो चुके है, अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये है तो फिर हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी जी कहते हैं कि हे जम्बु! उस काल और उस समय मे काकन्दी नाम की एक नगरी थी । वह मर तरह के ऐश्वर्य और धन-धान्य से परिपूर्ण थी । उसमें किसी प्रकार के भी भय की शड्डा नहीं थी। उसके बाहर एक सहस्राम्रवन नाम का उद्यान था, जो सब ऋतुओं में फल और फूलों से भरा रहता था । उस नगरी में जितशत्रु नाम राजा गज्य करता था। वहां भद्रा नाम की एक सार्थवाहिनी निवास करती थी । वह अत्यन्त समृद्विशालिनी और धन-धान्य में अपन