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प्रथमो वर्गः]
भाषाटीकासहितम् ।
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वर्गस्य प्रथमाध्ययनं समाप्तम् ।
पदार्थान्वयः-जंबू !-हे जम्बू ' एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से (प्रथमाध्ययन का अर्थ है ।) तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणं-उस समय रायगिहे-राजगृह णगरे-नगर था रिद्धि-ऋद्धि-ऊँचे २ भवन आदि तथा स्थिमियभय-रहित और समिद्धे-धन-धान्य से युक्त था । गुणसिलए-गुणशैल चेतितेचैत्य, सेणिए-श्रेणिक राया-राजा धारिणी देवी-धारिणी देवी सीहो सुमिणेसिंह का स्वप्न जालिकुमारो-जालिकुमार जहा मेहो-जैसे मेव कुमार अट्ठोआठ २ दामो-दात (अर्थात् विवाह के साथ लड़की की ओर से आने वाला दहेज) जाव-यावत् उप्पिं पास०-प्रासाद के ऊपर सुख-पूर्वक विहरति-विचरण करता है सामी-श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी समोसढे-सिंहासन के ऊपर विराजमान हो गये सेणियो-श्रेणिक राजा णिग्गो -श्री भगवान् की वन्दना के लिए गया जहा-जैसे मेहो-मेघकुमार गया था जालीवि-जालिकुमार भी णिग्गतोभगवान् की वन्दना के लिए गया तहेव-उसी प्रकार णिक्खंतो-निकला अर्थात् दीक्षित हुआ जहा मेहो-जिस प्रकार मेघकुमार की दीक्षा हुई थी एक्कारस-एकादश अंगाई-अङ्ग शास्त्रों का अहिजति-अध्ययन किया गुणरयणं-गुणरत्न तवोकम्मतप कर्म एवं-इसी प्रकार जा चेव-जो कुछ भी खंदग-वत्तवया-स्कन्दक मुनि की वक्तव्यता है सा चेव-वही वक्तव्यता जालिकुमार की भी जाननी चाहिए। उसी तरह की चिंतणा-धर्म-चिन्तना आपुच्छणा-श्री भगवान् से अनशन व्रत के धारण करने की आज्ञा लेना । थेरेहि-स्थविरों के सद्धिं-साथ तहेव-उसी प्रकार विपुलंविपुलगिरि पर दुरूहति-चढ़ता है । उस पर चढ़ कर नवरं-इतना विशेप है कि सोलस वासाई-सोलह वर्ष तक सामन्न-परियागं-श्रामण्य-पर्याय का पाउणित्तापालन कर कालमासे मृत्यु के अवसर पर कालं किच्चा-काल करके उड़े-ऊंचे चंदिम०-चन्द्र से यावत् सोहम्मीसाण-सौधर्म-देवलोक, ईशान-देवलोक जावयावत् पारणच्चुए-आरण्य-देवलोक और अच्युत-देवलोक अर्थात् कप्पे-बारह कल्प-देवलोक य-और गेवेज-प्रैवेयक विमाण-विमान पत्थडे-प्रस्तट उड्ढे-उनसे भी ऊंचे दूर-और दूर वीतिवत्तित्ता- व्यतिक्रम करके विजय-विमाणे-विजय-विमान मे देवत्ताए-देव-रूप से उववएणे-उत्पन्न हुआ। तते-इसके अनन्तर णं-वाक्या
विपुलगिरि साई-सोलह वर्ष तक ससर पर कालं किया, ईशान-दे