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[ प्रथमो वर्गः
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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ।
गार
लङ्कार के लिए है - वे थेरा भगवंता - स्थविर भगवन्त जार्लि - जालि अणगारंअनगार को काल-गयं - काल-गत हुआ जाणेत्ता - जानकर परिनिव्वाण-वत्तियंनिर्वाण के निमित्त काउस्सगं - कायोत्सर्ग करेंति २ - करते हैं और फिर कायोत्सर्ग करके पत्त-चीवराई - पात्र और वस्त्र गण्हंति - ग्रहण करते हैं तहेव - उसी प्रकार शनैः शनैः उस पर्वत से श्रयरंति - उतरते हैं । जाव - यावत् श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के सम्मुख आकर कहते है कि हे भगवन् । इमे - ये से- उस जालि अनयार - भंड- वर्षा - काल आदि में ज्ञान आदि आचार पालने के भण्डोपकरण है अर्थात् धर्म-साधन के उपयोगी उपकरण हैं । तब उसी समय भंते ! त्तिहे भगवन् । इस प्रकार कहकर भगवं - भगवान् गोयमे - गौतम स्वामी जाव- यावत् श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास इस प्रकार वयासी - कहने लगे एवं खलुइस प्रकार निश्चय से देवाणुप्पियाणं - देवानुप्रिय, आपका अंतेवासी - शिष्य जालि नाम - जालि नाम वाला अणगारे- - अनगार पगति - भद्दए- प्रकृति से ही भद्र से गं - वह जाली अणगारे जालि अनगार काल - गते - काल को प्राप्त हो कर कहिं गते - कहां गया है ? कहिं-कहां उववन्ने- - उत्पन्न हुआ है ? गोयमा - हे गौतम ! एवं खलु - इस प्रकार निश्चय से ममं - मेरा अंतेवासी - शिष्य तहेव - अर्थात् प्रकृति से भद्र जालि कुमार जधा - जिस प्रकार खंदयस्स - स्कन्दक की वक्तव्यता है उसी प्रकार जावयावत् काल०-काल करके उडूढं - ऊंचे चंदिम - चन्द्र से जाव - यावत् विजए - विजय नाम वाले विमाणे- विमान में देवत्ताए - देव- रूप से उववन्ने - उत्पन्न हुआ है । अपने प्रश्न के उचित उत्तर मिलने पर फिर गौतम स्वामी ने श्री भगवान् से पूछा भंते - हे भगवन् । णं-वाक्यालङ्कार के लिए है जालिस्स- जालि देवस्स - देव की केवतियं- कितने कालं - काल तक ठिती- स्थिति पण्णत्ता - प्रतिपादन की है ? फिर उत्तर मे श्री भगवान् कहने लगे गोयमा ! - हे गौतम । बत्तीस-बत्तीस सागरोवमाई - सागरोपम की ठिती- स्थिति पण्णत्ता - प्रतिपादन की है । फिर गौतम स्वामी पूछते हैं भंते! हे भगवन् ' से वह जालिकुमार देव ताओ - उस देवलोगाओदेव-लोक से उक्खएणं ३-आयु, स्थिति और देव भव - (लोक) के क्षय होने पर कहि कहा गच्छिर्हिति - जायगा अर्थात् किस स्थान पर उत्पन्न होगा । भगवान् ने उत्तर दिया गोयमा ! - हे गौतम | महाविदेहे वासे - महाविदेह क्षेत्र में सिज्झिहितिमिद्ध होगा अर्थात वहा सिद्धि प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा और निर्वाण-पद
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