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________________ ४१८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् खमेऽपि कौतुकेनापि नासद्ध्यानानि योगिभिः । सेव्यानि यान्ति बीजत्वंयतः सन्मार्गहानये ।। ६ ।। ..अर्थ-परन्तु योगी मुनियोंको चाहिये कि असमीचीन ध्यानोंको कौतुकसे खममें भी न विचारै । क्योंकि, असमीचीन ध्यान सन्मार्गकी हानिके लिये बीज खरूप (कारण) है । भावार्थ-खोटे ध्यानसे खोटा मार्ग ही चलता है, इस कारण मुनि जनोंको बुरा ध्यान कदापि नहिं करना चाहिये ॥६॥ सन्मार्गात्प्रच्युतं चेतः पुनर्वर्षशतैरपि । शक्यते न हि केनापि व्यवस्थापयितुं पथि ॥७॥ अर्थ-खोटे ध्यानके कारण सन्मार्गसे विचलित हुए चित्तको फिर सैंकड़ों वर्षीमें भी कोई सन्मार्गमें लानेको समर्थ नहिं हो सकता; इस कारण खोटा ध्यान कदापि नहिं करना चाहिये ॥ ७॥ असद्ध्यानानि जायन्ते खनाशायैव केवलम् । रागायसग्रहावेशात्कौतुकेन कृतान्यपि ॥८॥ अर्थ-असमीचीन (खोटे ) ध्यान कौतुक मात्रसे किये हुए भी रागादिरूप खोटे ग्रहोंके आवेशसे केवल अपने नाशके लिये ही होते हैं ॥ ८ ॥ निर्भरानन्दसन्दोहपदसंपादनक्षमम् । मुक्तिमार्गमतिक्रम्य कः कुमार्गे प्रवर्तते ॥९॥ __ अर्थ-इसकारण अतिशयरूप आनंदके समूहके स्थान को उत्पन्न करनेमें समर्थ ऐसे मोक्षमार्गको ( समीचीन ध्यानको) छोड़कर ऐसा कौन है जो कुमार्गमें (खोटे ध्यानमें ) प्रवृत्ति कर, ज्ञानवान् तो कदापि नहिं करै ॥ ९॥ शार्दूलविक्रीडितम् । क्षुद्रध्यानपरप्रपञ्चचतुरा रागानलोद्दीपिताः मुद्रामण्डलयनमन्त्रकरणैराराधयन्त्यादृताः। कामक्रोधवशीकृतानिह सुरान् संसारसौख्यार्थिनो . दुष्टाशाभिहताः पतन्ति नरके भोगातिभिर्वश्चिताः ॥१०॥ अर्थ-जो पुरुष खोटे ध्यानके उत्कृष्ट प्रपंचोंको विस्तार करनेमें चतुर हैं वे इस लोकमें रागरूप अमिसे प्रज्वलित होकर मुद्रा, मंडल, यंत्र, आदि साधनोंके द्वारा कामक्रोधसे वशीभूत कुदेवोंका आदरसे आराधन करते हैं। सो, सांसारिक सुखके चाहनेवाले और दुष्ट आशासे पीड़ित तथा भोगोंकी पीड़ासे बंचित होकर वे नरकमें पड़ते हैं, इस कारण कहते हैं कि ॥१०॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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