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________________ ३३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् __ अर्थ-जिनेन्द्र सर्वज्ञ देवके वचनोंसे कहे हुए सूक्ष्म तत्त्व हेतुसे वाध्य नहीं हैं. ऐसे तत्त्व आज्ञासेही ग्रहण करने (मानने ) चाहिये, क्योंकि जिनेन्द्र भगवान् वीतराग हैं, वे अन्यथावादी नहीं होते । यदि सर्वज्ञ न हो तौ विना जाने अन्यथा कहै, अथवा वीतराग न हो तो रागद्वेषके कारण अन्यथा कहै. और जो सर्वज्ञ और वीतराग हो वह कदापि अन्यथा नहीं कहेगा ॥ १ ॥ . ... प्रमाणनयनिक्षेपैनिर्णीतं तत्त्वमञ्जसा । ... स्थित्युत्पत्तिव्ययोपेतं चिदचिल्लक्षणं स्मरेत् ॥८॥ : अर्थ-आज्ञाविचय ध्यानमें प्रमाणनय निक्षेपोंसे निर्णय किये हुए, स्थिति उत्पत्ति और व्ययसंयुत अर्थात् उपजै विनशै स्थिर रहै ऐसा और चेतन अचेतनरूप है लक्षण जिसका ऐसे तत्त्वसमूहका चिन्तवन करै ॥ ८ ॥ श्रीमत्सर्वज्ञदेवोक्तं श्रुतज्ञानं च निर्मलम् । ___ शब्दार्थनिचितं चित्रमत्र चिन्त्यमविप्लुतम् ॥९॥ अर्थ-तथा इस आज्ञाविचय ध्यानमें श्रीमत्सर्वज्ञ करके कहे हुए निर्मल और शब्द तथा अर्थसे परिपूर्ण, नाना प्रकारके निर्वाध श्रुतज्ञानका चिन्तवन करना चाहिये ॥९॥ अब श्रुतज्ञानका वर्णन करते हैं, परिस्फुरति यत्रैतद्विश्वविद्याकदम्बकम् । - द्रव्यभावभिदा तद्धि शब्दार्थज्योतिरनिमम् ॥१०॥ अर्थ-शब्द और अर्थका प्रकाश है मुख्य जिसमें ऐसा तथा जो समस्त प्रकारकी विद्याओंका समूह है अर्थात् आचार आदि अंग, पूर्व अंग, बाह्य प्रकीर्णक रूप विद्याका समूह है तथा द्रव्य श्रुत (शब्दरूप ) और भावश्रुत (ज्ञानरूप) ये दो हैं भेद जिसके ऐसा सर्वज्ञ भगवानका कहा हुआ श्रुतज्ञान है ॥ १० ॥ अपारमतिगम्भीरं पुण्यतीर्थ पुरातनम् । .. पूर्वापरविरोधादिकलङ्कपरिवर्जितम् ॥ ११॥ __ अर्थ-फिर कैसा है श्रुतज्ञान कि-अपार है. क्योंकि, जिसके शब्दोंका पार कोई अल्पज्ञानी नहीं पा सकता तथा गंभीर है. क्योंकि जिसके अर्थकी थाह हर कोई नहीं पा सकता तथा पुण्यतीर्थ है. क्योंकि, जिसमें पापका लेश भी नहीं हैं अर्थात् निर्दोष है। इसी कारण जीवोंको तारनेवाला है तथा पुरातन है अर्थात् अनादिकालसे चला आया है और पूर्वापरविरोध आदि कलंकोंसे रहित है ॥ ११ ॥ नयोपनयसंपातगहनं गणिभिः स्तुतम् । विचित्रमपि चित्रार्थसंकीर्ण विश्वलोचनम् ॥ १२॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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