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________________ -------- २८०. रायचंन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् मोक्षको गये तथा अन्य भी अनेक मुनि नानाप्रकारके उपसर्गों को सहकर सभाधिमें (ध्यानमें) दृढ़ होकर प्रपंचरहित शिवपद को प्राप्त हुए, सो ऐसे उत्तम संहननवालोंके आसनका नियम नहीं है ॥ १६ ॥ तद्वै यमिनां मन्ये न संप्रति पुरातनम् । 1 अथ स्वप्नेऽपि नामास्थां प्राचीनां कर्तुमक्षमाः ॥ १७ ॥ अर्थ — आचार्य महाराज कहते हैं कि पूर्वकालके मुनियोंका पुरातन धैर्य वा बलवीर्य इस वर्तमानकालमें नहीं है इसी कारण पहिलीकीसी आस्था ( स्थिरता ) वर्तमानकालके मुनि स्वममें भी करनेमें असमर्थ हैं और जो इस समय करते हैं वे धन्य हैं ॥ १७ ॥ निःशेष विषयोत्तीर्णो निर्विण्णो जन्म संक्रमात् । आत्माधीनमनाः शश्वत्सर्वदा ध्यातुमर्हति ॥ १८ ॥ अर्थ-जो पुरुष इन्द्रियोंके समस्त विषयोंसे रहित है, संसारके परिभ्रमणसे विरक्त होगया है तथा अपने आधीन है मन जिसका ऐसा निरन्तर हो वह पुरुष ही ध्यान के योग्य होता है । भावार्थ - यह साधारण ध्यानकी योग्यता है ॥ १८ ॥ • अविक्षिप्तं यदा चेतः स्वतत्त्वाभिमुखं भवेत् । मुनेस्तदैव निर्विघ्ना ध्यानसिद्धिरुदाहृता ॥ १९ ॥ अर्थ - जिस समय मुनिका चित्त क्षोभरहित हो आत्मस्वरूपके सम्मुख होता है उस काल ही ध्यानकी सिद्धि निर्विघ्न होती है ॥ १९ ॥ स्थानासनविधानानि ध्यानसिद्धेर्नियन्धनम् । नैकं मुक्त्वा मुनेः साक्षाद्विक्षेपरहितं मनः ॥ २० ॥ : अर्थ — ध्यानकी सिद्धिका कारण स्थान और आसनका विधान है सो इनमेंसे एक भी न हो तो मुनिका (ध्यानीका) चित्त विक्षेपरहित नहीं होता । भावार्थ-स्थान और आसन ध्यानके कारण हैं, इनमेंसे जो एक भी न हो तो मन नहीं थँभता अर्थात् दोनों ठीक होनेसे ही मन थँभता है ॥ २० ॥ संविग्नः संवृतो धीरः स्थिरात्मा निर्मलाशयः । सर्वावस्थासु सर्वत्र सर्वदा ध्यातुमर्हति ॥ २१ ॥ अर्थ- - तथा जो मुनि संवेगवैराग्ययुक्त हो, संवररूप हो, धीर हो, जिसका आत्मा स्थिर हो, चित्त निर्मल हो वह मुनि सर्व अवस्था सर्व क्षेत्र और सर्व कालमें ध्यान करने योग्य है ॥२१॥ विजने जनसंकीर्णे सुस्थिते दुःस्थितेऽपि वा । यदि धत्ते स्थिरं चित्तं न तदास्ति निषेधनम् ॥ २२ ॥ • अर्थ -जनरहित क्षेत्र हो अथवा जनसहित प्रदेश हो, तथा सुस्थित हो अथवा -
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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