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________________ शानार्णवः। कायोत्सर्गश्च पर्यङ्कः प्रशस्तं कैश्चिदीरितम्। .. देहिनां वीर्यवैकल्यात्कालदोषेण संप्रति ॥१२॥ अर्थ-तथा इस समय कालदोषसे जीवोंके वीर्यकी विकलता है अर्थात् सामर्थ्यकी हीनता है इस कारण कई आचार्योने पर्यकासन (पद्मासन) और कायोत्सर्ग ये दो आसन ही मशस्त कहे हैं ॥ १२ ॥ वज्रकाया महासत्त्वा निःकम्पाः सुस्थिरासनाः। . सर्वावस्थाखलं ध्यात्वा गताः प्राग्योगिनः शिवम् ॥ १३ ॥ अर्थ-तथा जो वज्रकाय कहिये वज्रवृषभ संहननवाले बड़े पराक्रमी निःकम्प (धीर) स्थिर-आसन थे, वे ही योगी सर्वावस्थाओंमें ध्यान करके पूर्वकालमें मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ १३ ॥ उपसगैरपि स्फीतैर्देवदैत्यारिकल्पितः। स्वरूपालम्यितं येषां न चेतवाल्यते कचित् ॥ १४॥ अर्थ-जो पूर्वकालमें महापराक्रमी थे उनके खरूपमें अवलम्बित चित्त देव दैत्य वैरीद्वारा वदेहुये उपसर्गोसे कदापि चलायमान नहीं होता ॥ १४ ॥ श्रूयन्ते संवृतवान्ता स्वतत्त्वकृतनिश्चयाः। विसद्योग्रोपसर्गाग्निं ध्यानसिद्धिं समाश्रिताः ॥ १५॥ . अर्थ-जिन्होने अपने मनको संवररूप किया तथा जिन्होंने स्वतत्त्वमें निश्चय किया है वे ही पूर्वपुरुष तीन उपसर्गरूप अग्मिको सहकर ध्यानकी सिद्धिको आश्रित हुए सुने जाते हैं ॥ १५ ॥ केचिज्वालावलीढा हरिशरभगजव्यालविध्वस्तदेहाः . . . केचित्क्रूरादिदैत्यैरदयमतिहताश्चक्रशूलासिदण्डैः। भूकम्पोत्पातवातप्रवलपविघनव्रातरुद्धास्तथान्ये कृत्वा स्थैर्य समाधौ सपदि शिवपदं निम्प्रपञ्च प्रपन्नाः ॥ १६ ॥ अर्थ-फिर भी सुना जाता है कि पूर्वकालमें अनेक महामुनि तौ अमिकी ज्वालाकी पंक्तिसे जलकर समाधिमें दृढ रहनेसे तत्काल मोक्षको प्राप्त हुए, कितनेक मुनि सिंह अष्टापद.हस्ती सादिक द्वारा देहसे विध्वस्त हो समाधिमें स्थिरता धारण कर तत्काल : मोक्षको गये, तथा कितनेक मुनि क्रूर वैरी दैत्यादिके द्वारा चक्र शूल तरवार दंडादिकसे निर्दयताके साथ हते हुए समाधिमें लीन रहनेसे तत्काल मोक्षको गये. तथा कितने ही मुनि भूमिकंपनके उत्पात, प्रचंड पवन, प्रवल वज्रपात या प्रवल मेघादिकके उपसर्गको 'जीतके स्रग्धरा।
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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