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________________ ज्ञानार्णवः । :२:४३ . . नित्यानन्दमयीं साध्वी शाश्वती चात्मसंभवाम् । वृणोति वीतसंरंभो वीतरागाः शिवश्रियम् ॥ २४ ॥ ..: ___ अर्थ-जिसका संरंभ रागादिमयी विकल्प उद्यम वीत गये हैं ऐसा वीतराग मुनि नित्यानन्दमयी समीचीन, शाश्वती, आत्मासे उत्पन्न मोक्षरूपी लक्ष्मीको- वरता है। भावार्थ- मोक्षका खामी होता है ॥ २४ ॥ यत्र रागः पदं धत्ते द्वेषस्तत्रैति निश्चयः । उभावेतो समालम्व्य विक्राम्यत्यधिक मनः ॥ २५ ॥ अर्थ-जहांपर राग पद धारै अर्थात् प्रवत्तै तहां द्वेष भी प्रवर्तता है यह निश्चय है और इन दोनोंको अवलंबन करके मन भी अधिकतर विकाररूप होता है ॥ २५ ॥ .. सकलज्ञानसाम्राज्यं स्वीकर्तुं यः समीप्सति । सधन्यः शमशस्त्रेण रागशत्रु निकृन्तति ॥ २६॥ .. अर्थ-जो पुरुष समस्त ज्ञानरूप साम्राज्यके अंगीकार करनेकी इच्छा रखता है वह धन्य महाभाग उपशमभावरूप शस्त्रसे रागरूप शत्रुको काटता है ॥ २६ ॥ यथोत्पाताक्षमः पक्षी लनपक्षः प्रजायते । । ... रागद्वेषच्छदच्छेदे खान्तपत्ररथस्तथा ॥ २७ ।। अर्थ-जिस प्रकार कटीहुई पांखोंका पक्षी उड़नेमें असमर्थ होता है तैसे मनरूप पक्षी है सो रागद्वेपरूप पांखोंके कट जानेसे विकल्परूप श्रमणसे रहित हो जाता है॥२७॥ चित्तप्लवङ्गदुर्वृत्तं स हि नूनं विजेष्यति । - यो रागद्वेपसंतानतरुमूलं निकृन्तति ॥ २८ ॥ . अर्थ-जो पुरुष रागद्वेपके संतानरूप वृक्षकी जड़को काटता है वह पुरुष चित्तरूप वंदरके दुर्वृत्तविकाररूप भ्रमणको अवश्य ही जीतेगा ॥ २८ ॥ - इस प्रकार रागद्वेषका वर्णन किया. अब इनका मूल कारण मोह है सो उसका वर्णन करते हैं, अयं मोहवशाजन्तुः क्रुध्यति देष्टि रज्यते। अर्थेष्वन्यखभावेषु तस्मान्मोहो जगजयी ॥ २९ ॥ अर्थ-यह प्राणी मोहके वशसे अन्य खरूप पदार्थोंमें क्रोध करता है, द्वेष करता है, तथा राग भी करता है इस कारण मोह ही जगतको जीतनेवाला है ॥ २९ ॥ . रागद्वेषविषोद्यानं मोहवीजं जिनैर्मतम् । अतः स एव निःशेषदोषसेनानरेश्वरः ॥ ३०॥. ..
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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