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पान.
३०२
३१८
३२०
अगुद्ध सामर्थ्य योगी निष्फल भाक् भिन्नटि डीवोंका अज्ञानको जोडनेवाले
शुद्ध. सामर्थ्यसे योगी निष्कल भाव भिन्ननहि जीवोंका अज्ञानी
३२४
३२८
३२८
है) योगीजन प्रीतिको नहि करते हैं परमात्माका ध्यान
३३७ ३४४ ३४६
परमात्मा ध्यान येन
शेय
सोन
लोप्र
३५२ ८३५९ ३७४
प्रधम भयसे नावाय संगमने दिष्ट
प्रथम भारसे नामाय संगमसे निष्ट प्राति
४११
४११ ४२०
प्राती
आत्माकर
४२१ ४२२ ४२६
आत्मा त्कियन्यून खप्नादिकसे करनेवाले परिगृहोंकों सदृष्ट्या उपशय हिना
त्कियन्न्यून खमादिक करनेवाला परिगृहोको
सदृष्ट्या
उपशम शिनां
४२७
४२७
नव और
४२८ ४२८ ४३१
अनुत्तर होने वज्र, वृषभ, नाराच
पञ्च और उनमेंभी अनुदिश होते वज्र वृपभ नाराव