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________________ १५२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अपने वंशको शोभायमान करती हैं और शास्त्राध्ययन तथा सत्यवचनकरके सहित भी हैं ॥ ५७ ॥ सतीत्वेन महत्त्वेन वृत्तेन विनयेन च । विवेकेन स्त्रियः काश्चिद् भूषयन्ति धरातलम् ॥ ५८॥ अर्थ-अनेक स्त्रियां ऐसी हैं जो अपने पतिव्रतपनसे, महत्त्वसे, चारित्रसे ( सदाचरणोंसे ), विनयसे और विवेकसे इस पृथिवीतलको भूपित ( शोभायुक्त) करती शार्दूलविक्रीडितम् । निर्विष्णैर्भवसंक्रमाच्छ्रुतधरैरेकान्ततो निस्पृहै. नर्यो यद्यपि दूषिताः शमधनैर्ब्रह्मव्रतालम्विभिः । निन्द्यन्ते न तथापि निर्मलयमस्वाध्यायवृत्ताङ्किता निर्वेदप्रशमादिपुण्यचरितैर्याः शुद्धिभूता भुवि ॥ ५९॥ . अर्थ-जो संसारके भ्रमणसे विरक्त हैं, शास्त्रोंके परगामी और स्त्रियोंसे सर्वथा निस्पृह हैं तथा उपशमभावही है धन जिनके ऐसे ब्रह्मचर्यावलंबी मुनिगणोंने यद्यपि स्त्रियोंकी निंदा की है तथापि जो स्त्रियां निर्मल और पवित्र यमनियमखाध्यायचारित्रादिसे भूषित हैं और वैराग्य-उपशमादि पवित्राचरणोंसे पवित्र हैं वे निंदा करनेयोग्य नहीं हैं। क्योंकि निंदा दोषोंकीही की जाती है, किंतु गुणोंकी निंदा नहीं होती ॥ ५९॥ इसप्रकार स्त्रियोंकी दोषोंके आश्रय निंदा और गुणोंके आश्रय निंदा नहीं ऐसा वर्णन किया । कृवित्त । जे प्रमदाजन है जगमें तिनके गुण दोप कहे लखि नैनन । कामकलंकित है तिनके कुचरित्र अनेक बलें तनुसैनन ॥ वर्णन कौन सकै करने कछु देखि सुने वरने बच ऐनन । शील क्षमावतवान सुयोषित हैं तिनकी महिमा जिनवैनन ॥ १२॥ . इति श्रीज्ञानार्णवे योगप्रदीपाधिकारे श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते स्वीखरूपवर्णनरूपो द्वादशः सर्गः ॥ १२ ॥ १"निन्दिताः" इत्यपि पाठः।
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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