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वजारानी सद्याय.
(५१) जाणियें, वखाणी येंरे गुण सूरि छत्रीश ॥ नोकारवाली बंदीयें ॥ १ ॥ चिर नंदियेंरे उठी गणी यें सर । सूत्रतणा गुण गूंथिया, मणि मोहन रे मह मोटो मेर ॥ नोकण | पंचवीश जवद्यायना, सत्तावीश रे गुण श्री अण गार ॥ एकश या गुणें करी, इम जपीयेंरे जवियण नवकार ॥ नोक० ॥ ३ ॥ मोक जाप अंगुवडे, वैरी जूड़े रे तर्जनी अंगुली जोय ॥ बहु सुख दायक मध्यमा, अनामिका रे वश्यारथ होय ॥ नोक० ॥४॥ आकर्षण ची अंगुली, वली सुणजो रेगणवानी रीति ॥ मेरु उल्लंघन म म करो, म म करजो रेनख प्रीति ॥ नोकण || निश्चल चित्तें जे गणे, जे गणे संख्या दिकथी एकांत ॥ तेहने फल होए प्रतिघणुं, हम वोले रे जिनवर सिद्धांत ॥ नोक ॥६॥ शंख प्रवाल फटिक मणि, पत्ता जीव रतांजली मोती सार ॥ रूप सोवन रथण तणी, चंदन अवर अगरने घनसार || नोक ||७|| सुंदर फल रुद्राक्षनी, जयमालिका रे रेशमनी अपार ॥ पंच वरण सम सूत्र नी, वली वस्तु विशेष तणी उदार ॥ नोक० ॥ ८ ॥ गौतम पूर्वतें कह्यो, महावीरें रे ए सयल विचार || लब्धि कहे नवियण सुपो, गणजो नए जो रे नित्य नित्य नवकार || नोक० ॥ एए ॥ इति ॥
॥ अथ वणजारानी सधाय ॥
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॥ नरजव नयर सोहामं ॥ घणकारा रे ॥ पामीने करजे व्यापार ॥ अहो मोरा नायक || सत्तावन संवर ती ॥ व ॥ पोठी नरजे उदार ॥ ० ॥ १ ॥ शुभ परिणाम विचित्रता ॥ व० ॥ करियांणां वहु मूल ० ॥ मोक नगर जावा जणी ॥ व० ॥ करजे चित्त अनुकूल ॥ ० ॥ ॥ २ ॥ क्रोध दावानल उलवे ॥ व ॥ मान विषय गिरिराज ॥ ० ॥ उलंघजे हलवें करी ॥ व ॥ सावधान करे काज ॥ ० ॥ ३ ॥ वंशजाल माया त ॥ ० ॥ नवि करजे विशराम ॥ अ० ॥ खामी मनोरथ जट तणी ॥ वण् ॥ पूरणनुं नहीं काम || ||४|| रागद्वेष दोय चोरटा ॥ व ॥ वादमा करशे हेरान ॥ ० ॥ विविध वीर्य उह्रासथी ॥ व ॥ ते हण जे रे ठाय ॥ ० ॥५ ॥ एम सवि विधन विदारीने || ६ || पहोंचजे शि वपुर वास || अ || दयउपशम जे भावना ||व || पोठें जरया गुण राश ॥ ० ॥ ६ ॥ खायक जावें ते थशे ॥ व ॥ लाज होशे ते अपार ॥ ० ॥ उत्तम वणज जे एम करे ॥ व ॥ पद्म नमे वारं वार ॥ ० ॥ ॥ इति ॥