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सपरिकर श्रीखंधक ऋषिनी सद्याय. (३७१) द्यां पुःख अनंत जो, नमो नमो मृगापुत्र मुनिश्वर सिझने रे लो। १३ ।। हां ॥ देश गुर्जरमें महुधा नगरसुवास जो, श्रावक लोक वसे ति हां सुंदर दीपता रे लो ॥ हां॥प्रथम जिनेश्वर दर्शन अति मनोहार || जो, शाल गणीशनी एकवीशें जिन नेटिया रे लोल ॥ १४ ॥ हां ॥ मृगापुत्र मुनिराज तणी सद्याय जो, पूरण कीधी 'चोमा उल्लासशुरे लो। हां। उत्तराध्यायने उंगणीशमे विस्तार जो, संदेपे गुण स्तविया मुनि नरेंजना रे लो ॥ १५ ॥ इति मृगापुत्र सद्याय संपूर्णः । ॥अथ सपरिकर श्रीखंधकापिनी सद्याय प्रारंजः ॥
॥दोहा ।। ॥श्री सुव्रत जिनवर नमुं, चरणयुगल कर जोडि ॥ सावबीपुर शो जतुं, अरि सबला नल तोड ॥ १ ॥ जितशत्रु महिपति तिहां, धारणी नामे नार ।। गौरी ईश्वर सूनु सम, खंधक नामे कुमार ॥॥स्वसा पुरंद रा मनहरु, रूपें जीत्यो अनंग ॥ दिनकर इंफु ऊतरी, वसिया अंगोपांग ॥३॥ कुंलकार नयरी चली, दमक राय वरिष्॥जीव अन्नव्यनो इष्टधि, पालक मात्य कुदिउमा मात पिता सवि मलि करी. पुरंदर कन्या जेह ॥आपी दंगकरायने, पामी रूपनो नेह ॥ ५॥ एक दिन विहरंतां प्रजु, सावनी उद्यान || विशमा नवि पडिबोहता, समोसत्या जिन नाण ॥६॥ सुणि आगम खंधक विनु, नमे नगवंतने आय ॥ सुणी देशना दर्शन ल ही, निज निज स्थानक जाय ॥७॥ कुंचकार नयरीथकी, कोश्क रायने काज ॥ पालक सावजीनणी, आव्यो सनायें राज जापालक बोले सा धुना, अवगुणनो नंमार ॥ निसुणी खंधक तेहने, शिदा दीधी लगार ॥ ए॥ पालक खंधक उपरें, थयो ते क्रोधातूर ।। पली ते निजस्थानक गयो, दंगकरायनें पूर ॥ १० ॥ एहवे मुनि सुव्रत कने, नमि खंधक लिये व्रत ॥ पंचशत नरनी संगते, बहुल कयुं सुकृतं ॥ ११ ॥
॥ ढाल पहेली॥ ॥ विचरता गामो गाम ॥ ए देशी ॥ खंधक साधु विचार, आपे वांचना सार ॥ आज हो एक दिन पूढे सुव्रतने जी ॥१॥ स्वामी साधु सवेष, जाउं बहेनने देश ॥ आप || जो प्रजुजी आज्ञा दुवे सी ॥२॥ कहे जन साधु सर्व, मरणांत होशे उपसर्ग ॥ आ ॥ निसुणी खंधक वीनवे
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