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________________ - - - me - - श्रीविष्णुकुमार मुनिनी सद्याय. (३४) देखे, जाणे वलीन कार्य विशेषे ॥ १।। गांधर्व देव तिहां तिण वेला, ई अ वचने श्रावी हुवा जेसा ॥ विष्णुशषि पासे ते श्रावे, नाटक करीने को ध शमावे ।। १३ ॥ क्षणमाहे मुनि क्रोध शमियो, कृपावंत दयालू बनियो ।। महाशषि करुणानिधि कहीये, मुनि नरेंज देवसुख सहियें ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ खनाव रूपे थावी रह्या, मुनि श्री विष्णुकुमार || तो पण मरताना रहे, विप्र लोक निरधार ॥१॥ महापन चको हवे, श्रावि नमे धरि जाव ॥ में अपराध घणो कियो, तेह करो सुपसाय ॥२॥ गुरु कहे श्म तुम नवि घटे, समकितवंत कहाय ।। तुम बते श्म शासनतणी, लघुता केम सहाय ॥३॥ इत्यादिक शिक्षा दई, महापद्म नणि सोय ॥ गुरु पा से श्राव्या चली, कपि साथे वहु लोय ॥४॥ पण भ्रूजंतांनवि रहे, लोक सहु मिथ्यात्व ॥ ताव तैजस आदि दव, प्रगट्या जगत विख्यात ॥५॥ तव सुर नरपति श्म कहे, सुणो विष धरी प्रेम || राखडी ए ऋषि नाम नी, वांधो थाशो तुम हम ॥ ६॥ कडं तेम करियुं सवि, नई जगत सु खशांति ।। पर्व वलेव हांथकी, जगतमांहि विख्यात ॥७॥ .. ॥ढाल दशमी॥ ॥एक समे शामलियाजी ।। वृंदावनमां ।। ए देशी ।। रंग रसिया रंग रस बन्यो। मन मोहनजी ॥ श्रीजैनधर्मपसाय॥ मनडं मोडुं रेमनण॥ सत्य असत्य पटंतरो । म०॥ न्याय अन्याय दिखाय ॥ म० ॥१॥ मिथ्यात्वध्वांत पूरे गयुं ॥म०॥ केश जिन व्रत धरे मुनि पास ॥ म॥ केश्क देश व्रत उच्चरी । म ।। के जनक जया सुखि खास ॥ म॥ ॥ नव स्थिति पाक्या विना ॥ म॥ नवि जाणे धर्मनो मर्म ॥ मण ।। कारणे कार्यह नीपजे ॥ मण्॥ पंच मले शिवशर्म ॥ म॥३॥ गु रु मुख आलोयण ग्रही ॥म॥ श्री विष्णुरुषीश्वर संत ॥ म॥धरा पीठ विचरे सुखें ॥ म०॥ शोना शषि अधिक लहंत ॥म॥४॥ पर शासनमा दीपतो ॥ म॥ विष्णु वामन अवतार || म ॥ बलिराजा ने चांपीयो । म॥ धर्म कारण सुविचार ॥ म ॥५॥ तप तपता रहि रानमां ॥ म०॥ बहु वरस सहस सुख प्रेम ।। म ॥ केवल ज्ञान दिवाकरु । म | विष्णु शषि पाम्या देम ॥ म॥६॥ कमलासन -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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