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________________ ( ३४८ ) सद्यायमाला.. ॥ दोहा ॥ ॥ संघ मली सूरि निकट, खावे खलु धरि प्रेम ॥ विष्णुमुनिने ते डियें, सवि बन यावे दम ॥१॥ एम विचार करी सहू, जेजे एक मुनि ताम ॥ 'लेख वांचि वहेला तुमो, आवजोही इष ठाम ॥ २ ॥ कारण अत्र गुरुव न्यो, जायशो रुषिने वेण ॥ तुम्ह यावे इहां संघने, ऊपजशे सुख चेन ॥ ३ ॥ तव अंबरचारी मुनि, हुवा शीघ्र ततखेवं ॥ मेरु सुदर्शन चूलिका, प होता ततक्षणमेव ॥४॥ विष्णुकुमार मुनींद्रने, बंदी त्रिविधे सोय ॥ विप्र नमुचि कारणे, मोकलियो गुरु मोय ॥ ५ ॥ शिष्यं पास व्यतिकर सुणि, संघपत्र लियो हाथ ॥ वांची शीघ्र नृतांवला, घ्याव्या लेइ मुनि सांथ ॥६॥ ॥ ढाल नवमी || ॥ जत्तीनी देशी ॥ श्री विष्णुकुमार मुनींद्र, श्राव्या धारी परमानंद ॥ गुरु वंदीने पावन थाय, सहु संघने हर्ष नराय ॥ १ ॥ सुपि वलिराजा वृत्तंत, पहोता ते सजायें संत || देखी सघली सजा दरखाणी, नम्या विष्णु गुरुने जाणी ॥२॥ पण न नम्यो ते बलिराज, पूरवली घरी नहिं मा ज || अहंकार धरीने बेठो, नहिं बोल्यो कृषि संग ढीठो ॥ ३ ॥ तव कहे कषीश्वर वाणी, निर्लज बलि तुं अन्नाणी ॥ शुंरे राज लेइने राज्यो, का किडा पेरे शव माच्यो ॥ ४ ॥ चचमासे यति किहां जाय, अग्निहो केम निष्फल थाय || तेहथी श्रम रहेवा काज, भूमि दे कितनी खाज ॥ ५ ॥ सुपि वचन करे नृप हांसी, मही आपे त्रिपद विमासी ॥ खामी जा 5 जाणी दिधुं दान, एम बोल्यो ते बलिराजान ॥ ६ ॥ कोपे चढ्या वि ष्णुकुमार, क वैक्रियरूप पार || लक्ष योजननो देह करियो, दोय प दमें जंबुद्वीप धरियो ॥ ७ ॥ एक चरण पृथ्वीपर जोइयें, बाकी ते रही न हिं कोईये ॥ एवं कही बलीने माथे, पद देइ महीतल चांपे ||७|| काल करीने ते बली रूप, गयो सातमी भूमि अनूप ॥ तव विश्व जयंकर कांपे, रखे अमने बली परें चांपे || || अचला नू चलाचल होती. डूनियां सब मिलकर रोती ॥ मुख ढांकी मांहोमांहे रहियां, नाशीने किहां जाय त हियां ॥ १० ॥ गिरिवर पण कंपित जये हे, शिखरादिक सब टूट गये है ॥ उदधिनो पाणी उबलियो, शेषनाग महा सलस जियो ॥ ११ ॥ नव प्र हार्दिक सुरज आणे, नवो इंड जयो इहां टाणे ॥ तव शक्र. व करी
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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