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श्री विष्णुकुमार मुनिनी सद्याय. ॥ दोहा ॥
॥ अथ श्री विष्णुकुमार मुनि, तप तपता महाराण ॥ पट् सहस वर्ष तप तपी हुआ लब्धना गण ॥ १ ॥ आमासहि विप्पोसहि, खेलोस हि सुप्रमाण || पुलाक ने किय प्रमुख, कहेतां नावे ज्ञान ॥ २ ॥ मेरु सुर्शन चूलिका, विष्णुकुमार ऋषिराय ॥ गुरु अनुमत लेई करी, ध्यान करे तस वाय ॥ ३ ॥ इण अवसरें सुव्रत सूरि, विचरत देश विदेश ।। हस्ति नागपुरे श्रावीया, सायें मुनि सुविशेष ॥ ४ ॥ महापद्म नृप आदि दे, मली समस्त राजान ॥ चातुरमासनी चीनति, करि राख्पा घरी मान ॥ ' ॥ इत्यनंतर नमुचिजे, बली नाम जस दीध ॥ ते नृपपासें वर प्र मागे जेतस दीध ॥ ६ ॥
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॥ ढाल आठमी ॥
सहु
॥ दान कड़े जग हूं बड़े ॥ ए देशी ॥ सात दिवस मुजने सही, यज्ञ कारण दियो राज || ललना ॥ प्रभु तुम सुर चिंतामणि, वंठापूरण हार ॥ ललना ॥ १ ॥ दान उलट जर दीजियें, ज्युं की जियें वंबित काज ॥ ल० ॥ सुरधेनु पारश मणि, प्रगट्यो पुण्य हम आज || ल ||दान ॥२॥ वचन राय बच्यो जिके, दीधुं द्विज नणि राज || ल० ॥ अंतःपुर रहिता हुवा, वचन प्रतिज्ञा लाज ॥ ल० ॥ दान० ॥ ३ ॥ अतिथि संन्याशी का पडी, मठवासी जोगेश || ल० ॥ नरडादिक लड् नेटणं, आवी नमे देश | ० || दान || ४ || जैनगुरु नव आविया तत्र धस्यो पूर्व जो द्वेष || स० ॥ तेडी थिविरनें इम कड़े, नम्या तुम विना सदु शेष ॥ ल० ॥ ॥ दान० ॥ ५ ॥ तुम्ह नम्या नर्दि किए कारणें, शुं एइ तुम्हने गुमान ॥ ल || रहो वो म पृथवी विषे, कर नवि आपो मान || ल० ॥ दान० ॥ ६ ॥ तव कृषि नृप जणी इम वढे, लिंग परें हम एहि ॥ ल० ॥ नदि नमे गृहस्थने मुनिवरा, परिग्रह नहिं हम पांहि ॥ ० ॥ दान० ॥ ७ ॥ कोप्यो द्विज बलि राजियो, जांखे गुरुप्रतें आम || ल० ॥ सात दिवसनी | अंदरे, तजवुं पट खंग ठाम ॥ ल० ॥ दान० ॥ ७ ॥ लोकें कहुं माने नहि, न धरे नरेंद्रनुं कान || ल० ॥ तव वलीतुं आवी चढयुं, पोहोतो ऋषि निजथान || स० ॥ दान० ॥ ॥
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