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"सद्यायमाला
पर बेसिने ॥ ० ॥ कहे धर्म परम सुखकार ॥ म० ॥ दुविध धर्म मुक्ति तथा ॥ म० ॥ आगार ने अणागार । म० ॥ ७ ॥ इम उपदेश देतां रह्या ॥ म० ॥ नर नारी केरां वृंद ॥ म० ॥ मंगल पावन करी ॥ म० ॥ सेवे मुनि नर इंद्र ॥ म० ॥ ८ ॥ अंतस मे सण करी ॥ म० ॥ सुख संलेव या तप सार || म० ॥ काल करी मुक्ते गया ॥ म० ॥ मुनि नरेंद्र पाम्या जव पार ॥ ० ॥ एए ॥ विष्णुकुमार मुनींनी ॥ स० ॥ कहि सवाय रसा ल ॥ म० ॥ जणे गुणे जे सांजले । म० ॥ ते लेहशे मंगलमाल ॥ म० ॥ ॥ १० ॥ इति श्री विष्णुकुमारमुनि सद्यायः संपूर्णः ॥
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॥ अथ श्री हीरविजयसूरि सचाय प्रारंभः ॥
॥ बे कर जोडी बिन जी, शारदा लागुं जी पाय | वाणी आपो निर्म ली जी, गाशुं तपगवाय || तें मन मोर्छु रे हीरजी ॥ १ ॥ ए की ॥ अकबर कागल मोकले, हीरजी बांचे ने जोय ॥ तुऊ मलवा छालजो घ पो, बिरबल करनो जी जोय ॥ तें ॥ २ ॥ अकबर करे जी विनति, टो करमल लागे जी पाय ॥ पूज्य चोमासुं इहां करो, होशे धर्म सवाय ॥ ० ॥ ३ ॥ तेजी घोडाजी खाते घणा, पायक संख्या नहिं पार | माहाजन
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वे जी प्रति घणा, थानसिंह शाह उदार ॥ तें ॥ ४ ॥ पहेतुं चो मासुंजी यागरे, बीजुं लाहोरमांहि ॥ त्रीनुं चोमासुं फत्तेपुरे, 'अकबर करे रे उत्साहिं ॥ तें ॥ २ ॥ कामर सरोवर बोडियां, बोड्यां बंदीनां बान ॥ बोड्यां पंखीने मृगलां, अकबर दे बहुमान ॥ तें ॥ ६ ॥ तप गछनायक राजीयो, श्री विजयसेन सूरींद ॥ तास शिष्य भक्ति जणे, होजो मुऊ आनंद ॥ तें ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री ऋतुवंती सद्याय प्रारभ्यते ॥
॥ हो वांसलडी र थ लागी रे ब्रजनी नारने ॥ ए देशी ॥ सुए सो जागी सुखकारी जिनवाणी मनमां खाणी ॥ शिवसाधक जिनवरनी वाणी, hs तरिया तरशे नवि प्राणी, पीस्तालीश आगम शुभ जाणी ॥ सु०॥ १ ॥ जे पवित्र ने सांगलीये, अपवित्राई इरें करिये, समवसरणमां जिम संचरिये ॥ सु० ॥ २ ॥ अपवित्राइ लगी करजो, कतुवंती संग ति परहरजो, असजाइथी डूरें संचरजो ॥ सु० ॥ ३ ॥ दर्शन देहरे क रो चोथे दिवसे, पडिकमणुं पोसा परिहरशे, सामायिक जण नविकर