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कलावतीनुं चोढालियु. (एए) मावो चंगालियें लीध ॥ वहेरखा सहित वेहु ग्रहे जी, आणी रायनें दी ध ॥ सु०॥ कर्म०॥ ए॥ नारीघात नाम निरखता जी, मूर्माणो तत काल । शीतल वाये सज कस्यो जी, रोवे तव महिपाल ॥ सु॥ कर्मण ॥१०॥ किसी कुमति मुझ नपनी जी, कीधो सवल अन्याय ॥ ए जीव्यु कोण कामर्नु जी, राजरमणी न सुहाय ।। सुण ॥ कर्म ॥ ११ ॥ चय रचावी चंदनें जी, बलवाने तिहां जाय ॥ लोक मली वारे घशुंजी, व चन न माने राय ।। सु॥ कर्मः ॥ १२ ॥ इति ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ वासाजीनो कुंअर लामिलो ॥ ए देशी ॥ कलावतीने जे भयो, ते सुणजो प्रतिकार ॥ नवि प्राणी ॥ करतेदन वेदनथकी, सुत जनम्यो तेणि वार ॥ नविण ॥१॥ शीयलनो महिमा जाणीयें, शीयले संप त्ति थाय ।। च ॥ ए आंकणी ॥ विन विपस पूरे टले, सुर नर प्रणमे पाय ॥ ज० ॥ शी०॥।॥ पुत्र प्रत्ये कहे पनिणी, शुं करूं ताहरी सार न ॥ मादरी कुखें अवतस्यो, तुं निर्जाग्य कुमार ॥ न ॥ शी ॥ ॥३॥ अशुचिपणुं केम टालशु, पालशुं ए केस वाल || ज॥ शौच करे रोवे वली, वन महोखो ततकाल ॥ ॥ शी॥४॥ शियले सूकी नदी वही, पाणी श्राव्यु नजीक ॥ ॥ जाणे के जल ले जाय शे, वच्चे वेठी निर्जीक ॥ ज० ॥ शीणा५ ॥ आंटो देश विडं दिशे, नदी वही दोय धार ।। जय ॥ वोले वांह नीची करी, जलसांहे लेणि वार ॥ ॥ शीत ॥ ६ ॥ नवपक्षव नवली अझ, बहेरखाती बांह ॥ न ॥ वीजी पण तिमहिज यश, पामी परम उत्साह ॥ ज०॥ शी ॥ ॥७॥ अचरिज देखी यावियो, तापस एक तेणि वार ।। च ॥ जन कनो मित्र जाणी करी, वोलावे सुविचार ॥ ॥ शी०॥७॥ रे पुत्री तापस कहे, एकली अटवी मजार ॥ न ॥ केम आवी मुऊने कहे, तव नांख्यो संघलो विचार || न॥ शी॥ए॥ कोप्यो तापस एम कहे, राजाने करूं उत्पात ।। ज॥ कलावती तव विनवे, कोप म करो मुज तात ॥न । शी० ॥ १०॥ तापलें तिहां विद्यावलें, अ वल रच्यो आवास ॥ ॥ कलावती सुतशुं तिहां, अहोनिश रहे उहास ॥ जण ॥ शी ॥ ११ ॥ काठियारा तेणे अवसरे, देखी एह वि
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