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(३०)
सद्यायमाला.
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चार ॥न ॥ दोड्या देवा वधामणी, राजाने तेणि वार ॥ ज०॥शी ॥ १२॥ मंत्री अरज करे तिसे, सुणो राजन सुकुमाल ||न०॥ श्रवधि दियो एक माकनी, खबर करुं ततकाल ॥०॥शी॥१३॥ एमक ही शोध करण चले, एहवे बाव्या कठियार ॥ ॥ राणीनी विगत कही सवे, हरख्यो चित्त मकार ||नः ॥ शी०॥ १४॥ सूक्वं वन सवि मोरियुं, शूकी नदी वहे पूर ॥न ॥ राणी सुत तिहां जनमियो, कर ऊग्या ससनूर ॥ ॥ शी० ॥ १५ ॥ राजाने जश् विनव्यो, पा म्यो हर्ष विशाल ॥ ॥ राणीने तेडवा मोकल्यो, मंत्रीने ततकाल ॥नाशी० ॥१६॥राय राणी मन रंगशुं, आव्यां नगर मकार आज उत्सवरंग वधामणां, हुवो ते जय जयकार ॥ ॥ शी० ॥१७॥
॥ढाल चोथी॥ ॥श्रादर जीव क्षमा गुण आदर ।। ए देशी। एक दिन राय राणी मन रंगें, वनमा खेलण जावे जी ॥ तव तिहां साधु धर्मधुरंधर, तेहनां दर्शन पावे जी ॥१॥ नवियण धर्म करो मन शुओं, धर्मे संपत्ति थाय जी ॥ ए
आंकणी ॥ धर्मे मनोवंडित सवि दुवे, धर्मे पाप पलाय जी ॥५॥ ॥५॥ पाय प्रणमी साधुने पूडे, नगवंत मुजने लाखो जी ॥ राणी कर बेद्या किण कारण, तेहनो उत्तर दाखोजी ॥ ॥३॥ साधु ज्ञानी एणी परें बोले, महा विदेहमा रहेता जी ॥ महींपुरी नयरी नृप विक्र म, लीलावती विलसंतां जी ॥ ॥४॥ पुत्री प्रसवी रूप अनुपम, || सुलोचना गुणखाणी जी ॥ विद्यावंत विदेशी सूडो, वदतो अमृत वाणी जी ॥ ज०॥५॥ सुलोचना सोवन पिंजरमां, सूडो घाली राखे जी॥ गाहा गूढा नवली गावे, मनोहर मेवा चाखे जी ॥ ॥ ६॥ मनमा कीर विमासे एहवू, पिंजर बंधन रहे, जी ॥ श्राश पराश् करवी अहो निश, परवश सुख न लेहबु जी ॥ ज० ॥७॥ एक दिन पिंजर बार उघडियुं, पोपट तव निकलीयो जी ॥ वनमा तरु शाखायें बेगे, मन वंबित सवि फलियो जी ॥ ज० ॥ ॥ सुलोचना सूडाने विरहें, तत क्षण मूर्छित थावे जी ॥ राजा पाश नखावी सूडो, बंधावीने लावे जी ॥ ज० ॥ ए॥ रीषाणी सूडाशुं कुमरी, पांखो बेहु तस बेदे जी॥ सूडो पण तनुमोह तजीने, नूख तृषा बहु वेदे जी ॥ ॥१५॥
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