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(१८)
सद्यायमाला.
| मां बहु खेद हो ॥ न० ॥ शी० ॥ ११ ॥ राणी प्रत्यें महीपति कहे, केणे हव्यां तुमने आज हो ॥ न० ॥ बहुमूला तमे बरखा, केम कीधा कला वती काज हो ॥ न० ॥ शी० ॥ १२ ॥ में न घडाव्या बहेरखा, तस खबर नहिं मुज कांय हो ॥ न० ॥ पूढी निरति करो तुमें, सुणी लीलावती तिहां जाय हो ॥ न० ॥ शी० ॥ १३ ॥ राय बानो नजो रह्यो, तव पूढे लीलावती तेह हो ॥ न० ॥ साधुं कहो बाइ कलावती, केणें दीधा बढे रखा एह हो ॥ न० ॥ शी० ॥ १४ ॥ हुं घणुं जेहने वालही, तेथे मोक दया मुकनें एह हो ॥ न० ॥ रात दिवस मुक सांजरे, पण जाइ न कह्यो तेह हो ॥ न० ॥ शी० ॥ १५ ॥ राजा कोधातुर थयो, सुणी कलाव तीनां वचन हो || न० ॥ प्रीति पूरवला पुरुषशुं, मूक्या ए तेणें प्रछन्न हो ॥ ० ॥ शी० ॥ १६ कोल दियो लीलावती जणी, दोय बहेर खासेंती बांह दो || न० ॥ बेदावी तुऊने दीयुं, सुणी पामी परम उत्ता द हो || न० ॥ शी० ॥ १७ ॥ इति ॥
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॥ ढाल बीजी ॥
॥ सु सु रे गौतम समय में करीश प्रमाद ॥ ए देशी ॥ राय हुम म एहवो करयो जी, चंदालने तेपि वार ॥ कलावती कर कापने जी, आणी यो एणी वार ॥ १ ॥ सुख सुख रे प्राणी, कर्म तणां फल एह ॥ ए यांकणी ॥ जन्मांतर जीवें किया जी, यावे उदय सही तेह || सुप सुरे प्राणी || कर्म० ॥ २ ॥ सांजली अंत्यज घरहस्यो जी, चंगाली ने | कड़े तेह || राय हुकम रुडो नहीं जी, मूकीयें नगरी एह ॥ सु० ॥ कर्म० ॥ ३ ॥ पापणी कहे तुं शुं बीये जी, ए बे माहरु काम || शिर ना मी जी रही जी, रायें खन दीयो ताम ॥ सु ॥ कर्म० ॥ ४ ॥ रथ जोडी रंगा कहे जी, बेलो बाइ इणमांद ॥ पीयर तुमने मोकले जी, राय धरी बहु चाह ॥ ० ॥ कर्म० ॥ ५ ॥ गलियल माफा केहवा जी, श्याम वृषन वलि केम ॥ पुत्र रहे नहिं रायने जी, काधो कारण एम ॥ सु०॥ कर्म ॥ ६ ॥ रथ बेसारी रानमां जी, चाली उजड वाट ॥ सूके वन रथ बोडियो जी, राणी पामी उच्चाट ॥ सुख० ॥ कर्म० ॥ ७ ॥ पी यर मारग ए नहिं जी, चांगाली कड़े ताम ॥ राये मुऊने मोकली जी, कर कापणने काम ॥ सु ॥ कर्म ॥ ८ ॥ जमणो पोतें बेदीयो जी,