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. .. सद्यायमाखा. राणा राया ॥ फिर फरमान फिरे नही, जे उनही पाया ॥ सु॥॥ तुम विण पुःखमें दीहरा, कहो कैसे जरुंगी॥ तेरे विरह वियोगशें, दुःखें जार जरूंगी॥तैरीशुं तैरीशुं प्रीतमा, नवि प्राण धंरुंगी। में कुलवंती का मिनी, पढी काठ करुंगी। सुपए। शीख करी प्यारी कन्हें, दरहाल ते हाट्यामंदिर मुलक बोडी करी, बे खरची चाल्या ॥ वोलावीने पुःख धरी, वली मन वाख्या॥ के. सती हु कामिनी, नेद नीका पाल्या। सुण ॥१०॥ काया कामिनी जीउ धणी, मत र विचारो ॥ तप जप संयम संग्रहो, नर कांश महारो ।। कलिकालें जब तेरी है, तब क्या तुम चारो ॥राज रंक सब एक है, आगे नहीं कोई टारो॥सु०॥४॥अथिर ए सं सार है, कोण केहबो ना ॥ मोहनिंद बोडी करी, करो सुकृत कमाइ ॥ शीख सुणी जयसोमकी, सी सुजस जला ॥ शिवसुख केरे कारणे, क रो धर्म सखा ॥ सु० ॥ १५ ॥ इति शीखामणनी सद्याय समाप्त ॥
॥अथ कायापुर पाटणनी सद्याय प्रारंजः | कायापुर पाटणं रुघडो, पेखो पेखो नव पोल माम रे ॥ हंसराजा रंगे रमें राजीयो रे, मलियो मलियो मन परधान रे॥२॥ काया कारमी ॥जीव जाणे जे सर्व माहें, कूडो कूडो कुटुंब संघात रे॥राने जेम पंखी बेसे एकां, जुड़ी उडी जाय प्रजात रे॥ का॥२॥ एक जीवतणी वेल डी, करहला दोय चरंत रे॥ एक कालोने बीजो ऊजलो, दिनदिन वेल घटंत रे । का॥ ३॥ एक तरुवर धनरस चढे, एक पडे पीपल पान रे॥ चतुरपणे जोजो पारखं, हीयडे धरजो अरिहंत ध्यान रे ॥ का॥४॥ श्णवाटे नथी बेग वाणीया, वली नथी दाटर्नु गम रे ॥ एवं जागी साथे लेजो संबलो, वेगडं डे मुक्तिनुं गाम रे॥मा॥५॥ आपणो श्रा तमा बालुडो, सरस जोबन लहे वेश रे॥ मुक्तिरमणी परणावजो, सहज सुंदर उपदेशं रे ।। मा॥६॥इति कायापुर पाटणनी सद्याय ॥
॥अब मांकडनी सद्याय प्रारंजः ॥ . . ॥मांकडनो चटको दोहिलो, केहने नवि लागे सोहिलो रे ॥मांकड मू गंलो॥ एतो निर्लजाने नही कान, एहने हीयडे नहीं शान रे॥ मांगा॥ एतो पाट पलंगमा आवे, चटको दे बानो जावे रे ॥ मां ॥ राते राणो प्रश्ने फरतो, राजा राणीथी नवि मरतो रे ॥ मां०॥॥ एतो चरणा
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