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________________ विश्व-मानव गांधी श्री काशिनाथ त्रिवेदी “A leader of his people, unsupported by any outward authority, a politician, whose success rests not upon craft, nor mastery of technical devices, but simply on the convincing power of his personality, a victorian fighter who has always scorned the use of force, a man of wisdom and humility, armed with resolve and inflexible consistency, who has devoted all his strength to the uplifting of his people and the betterment of their lot, a man who has confronted the brutality of Europe with the dignity of the simple human being, and thus at all times risen superior Generations to come, it may be, will scarce believe that such a one as this ever in flesh and blood walked upon this carth "mA Einstein गाधी जी की ७५वी वर्षगांठ पर लिखे गये विश्वविख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टीन के ये वचन गाची जी के समग्र व्यक्तित्व को वडी खूबी के साथ नपी-तुली, किन्तु सारगर्भित भाषा मे व्यक्त करते है। आज जव कि सारी मानवता सत्रस्त भाव से कराह रही है और अपने निस्तार का कोई एक निश्चित उपाय उसके बस का नहीं रहा है, अकेले गाधी जी का ही व्यक्तित्व ऐसा है, जो उसे आश्वस्त कर रहा है। चारो ओर फैली हुई घनी निराशा के घोर अन्धकार में वही प्रकाश की एक ऐसी किरण है, जो मनुष्य को प्राशा के साथ जाने का वल और निश्चय दे रही है । आज विश्व की समूची मानवता की, जो मानव की ही पशुता, पैशाचिकता और वर्वरता से घिर कर जकड गई है, भाकुल हो उठी है, निरुपाय और निस्तेज हो गई है। यदि कही से मुक्ति का कोई सन्देश मिलता है, पागा, विश्वास, श्रद्धा और निष्ठा का कोई जीता-जागता प्रतीक उसके सामने खडा होता है, दुख, दैन्य, दारिद्रय, दास्य और अन्याय-अत्याचार का अटल भाव से प्रतीकार करने की प्रचण्ड शान्त शक्ति का कोई स्रोत कही उसे नजर आता है तो वह है परतन्त्र और पराधीन भारत के इस सर्वथा स्वतन्त्र और स्व-अधीन महामानव गाधी में । गाधी जी के विश्वव्यापी प्रभाव का और उनकी प्रचड शक्ति का रहस्य भी इसी मे है कि वे स्वय स्वतन्त्र और स्वाधीन है। दूसरा कोई तन्त्र, दूसरी कोई अधीनता उन पर न लद सकती है, न लादी जा सकती है। उनकी अपनी सत्ता ससार की सभी सत्तानो से परे है और श्रेष्ठ है। इसीलिए आज वे समूचे विश्व के आराध्य बने हुए है और बडी-से-बडी भौतिक सत्ताएँ भी उनके सामने हतप्रभ है। यो देखा जाय, तो उनके पास वाहर की कोई सत्ता नही-सेना नही, शस्त्रास्त्र नही, कोष नही, शासन के कोई अधिकार नही-फिर भी वे है कि देश के करोडो नर-नारियो पर और विश्व के असख्य विचारशील नागरिको पर उनकी अखड सत्ता व्याप्त है। किसी सम्राट् के शासनादेश की उपेक्षा और अवहेला हो सकती है, लोगो ने की है, करते है और करेंगे, पर गाधी के आदेश की यह परिणति नहीं। वह तो एक प्रसाद है, एक सौभाग्य, जो ललक के साथ लिया जाता है और विनम्र भाव से, कृतार्थता के साथ, शिरोधार्य होता है। उसकी इप्टता मे, उसकी कल्याणकारिता में, किसी को कोई सन्देह नहीं। स्वतन्त्रता और स्वाधीनता | मानव की परिपूर्णता के लिए, उसके सम्यक् विकास और उत्थान के लिए, इन दोनो की उतनी ही जरूरत है, जितनी जीवन के लिए प्राणो की और प्राण के लिए श्वासोच्छ्वास की। विना
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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