SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 748
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काश्मीरी कवियित्रियों ६९३ इनकी वाणी के कतिपय दृष्टान्त इनकी प्रवृत्ति को स्पष्टतया व्यक्त कर देते है। इनकी वाणी पर सस्कृत आचार्यों की छाप है। वे लिखती हैं अन्दर भासिय न्यवर छोडुम पवनन रगन करनम सथ ध्यान फिन दिए जगि फीवल जोनुम रग गव सगस मोलिय क्यथ अन्दर होते हुए भी मैने उसे (ब्रह्म को) वाहर ठूढा । पवन ने मेरी नसो को तसल्ली दी और ध्यान से मैने सारे सतार में केवल एक परमात्मा को जाना। यह सारा प्रपच (रंग) ब्रह्म में लीन हो गया। वे फिर कहती है ओंकार यलि लय मोनुम वृहिय कुरूम पनुन पान श्य वत त्रोविथ त सथमार्ग रुटुम त्यलि ललि वोचुस प्रकाशस्थान ॥ ओकार को जब मैंने अपने आप में लय कर लिया, अपने शरीर को भस्म किया और छ रास्तो को छोड कर सातवे अर्थात् सत्य के रास्ते को ग्रहण किया, तब मैललीश्वरीप्रकाश के स्थान पर पहुंची। इस पद्याश में सत्य का सहज पथ दिखाई देता है। ब्रह्म को अपने में लय करके सत पथ पर चलने का वे प्रादेश देती है। फिर कहती हैं और ति पानय योर ति पानय पानय पनस छु न मैलान । पृथम अच्यस न मुलेह दानिय सुइ हा मालि चय प्राश्चर जान ॥३॥ उधर भी आप ही है और इधर भी आप ही है, किन्तु आप अपने को ही नहीं मिलता। इसमे जरा भी नहीं नमा सकता। हे तात | इस आश्चर्य पर तू विचार कर। ___ यहां अपने आपको पहचानने का प्रयत्न है। कहती है कि आत्मा ही ब्रह्म होते हुए माया का परदा पडा रहने से मिलता नहीं। आगे चलकर कहती है अछान आय त गछुन गछे पकुन गछे दिन क्योह राय योरय प्राय तूर्य गछुन गर्छ कह न त कह न त कह न त क्याह? अनादि से हम आये है और अनन्त मे हमे जाना है। दिन और रात हमे इसी की ओर चलते रहना चाहिए। जहां से हम आये हैं, वही हमे जाना है । कुछ नही, कुछ नही, कुछ नही। यह ससार कुछ नही । गुरू की श्रेष्ठता बताते हुए कहती है गुरु शब्दस युस यछ पछ मरे ज्ञान वहिग रटि च्यथ तोरगस इन्द्रय शोमरथि अनन्द करे प्रद कस मरियत मारन कस ॥५॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy