________________
काश्मीरी कवियित्रियाँ
कुमारी प्रेमलता कौल एम० ए० ___ काश्मीरी कविता का आस्वादन कराने के पूर्व काश्मीरी भाषा के सम्बन्ध मे कुछ बातें निवेदन कर देना आवश्यक है। यद्यपि स्थानाभाव के कारण काश्मीरी भाषा के क्रमिक विकास का सविस्तर वर्णन सम्भव नही, तथापि थोडा-सा दिग्दर्शन तो करा ही सकती हूँ।
यह सर्वमान्य है कि काश्मीर की प्राचीनतम भाषा सस्कृत थी। जिस प्रकार बोलचाल की भाषा में समयसमय पर परिवर्तन होते रहते है, काश्मीरी भाषा भी बदलती रही है। उसमे रूसी और तिब्बती भाषा के आज भी कुछ चिह्न मिलते हैं। जव से मुसलमानो के आक्रमण होने प्रारम्भ हुए तब से तो बोलचाल की भाषा में बहुत ही परिवर्तन होने लगे। जैसा कि ऊपर निवेदन किया जा चुका है, काश्मीर की भाषा तो सस्कृत थी। वाहर से आई फारसी। यद्यपि काश्मीर-वासियो ने इस नई भाषा से दूर रहने का भरसक प्रयत्न किया, परन्तु फिर भी वह उन पर लादी जाने लगी। मुसलमानो ने फारसी को राज्य-भाषा बनाया। आपस का सम्पर्क आवश्यक था। परिणामस्वरूप दोनो भाषाओ के शब्द विभिन्न प्रकार से प्रयुक्त होने लगे। काश्मीर वाले फारसी का और मुसलमान संस्कृत का शुद्ध उच्चारण नही कर सकते थे। नतीजा यह हुआ कि एक ऐसी भाषा वन गई, जिसमें फारसी और सस्कृत के अपभ्रश शब्दो का इस्तेमाल होने लगा। इस नवीन भाषा का व्याकरण दस प्रतिशत सस्कृत व्याकरण है, किन्तु इसमें चार ऐसे स्वर आ गये है, जो न सस्कृत वर्णमाला में है और न फारसी में। इनका कुछ सम्बन्ध रूसी भाषा से अवश्य पाया जाता है। हम उन्हें अपने ही स्वर-अक्षरो में कुछ चिह्न लगा कर सूचित करते है।
आजकल को काश्मोरी भाषा में उर्दू, फारसी, हिन्दी, सस्कृत और अंग्रेजी के शब्द प्रयुक्त होते है । फारसी के अतिरिक्त यहाँ देवनागरी से मिलती-जुलती 'शारदा' नामक लिपि भी पाई जाती है, जिसका प्रयोग कुछ प्राचीन हिन्दू ही करते है और इसका स्थानिक प्रयोग ज्योतिष तक ही सीमित है । कोई उल्लेखयोग्य साहित्य उसमें उपलब्ध
इस समय जो काश्मीरी साहित्य मिलता है, उसे देखने से पता चलता है कि इस प्रदेश में अनेक कवि हुए है, जिन्होने साहित्य की अच्छी सेवा की है। प्रस्तुत लेख में केवल कवियित्रियों पर ही प्रकाश डालूगी।।
काश्मीरी कवियित्रियो में सबसे पहला स्थान ललितेश्वरी देवी उपनाम 'ललीश्वरीदेवी' का है। इनकी रचनाएँ बहुत ही प्रभावशाली है और इनकी वाणी में अद्भुत भोज है।
उनका जन्म काश्मीर के एक गाँव में हुआ था। बडी होने पर पध्मपुर में एक ब्राह्मण से इनका विवाह हुया । जब ये ससुराल पहुंची तो इन्हें अपनी आध्यात्मिक उन्नति मे अनेक बाधाओ का सामना करना पड़ा। इनकी सास का व्यवहार इनके प्रति बडा कटु था। फिर भी सब कुछ सहन करती हुई वे अपने मार्ग पर अग्रसर होती गई। इनके बारे में अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएँ प्रसिद्ध है, लेकिन विस्तार-भय से उनका उल्लेख करना सम्भव नही।
___ ललितेश्वरी का शास्त्रीय अध्ययन कितना था, इसका ठीक पता नही, लेकिन वेदान्त के सिद्धान्तो को उन्होने गहराई से हृदयगम कर लिया था। जैसा कि उनकी रचनाओ से विदित होता है, ब्रह्म-ज्ञान को उन्होने व्यक्तिगत् माधना का विषय बनाया। हर स्थान पर 'वटा (ब्राह्मण) कह कर वे जनता को सम्बोधित करती है। कर्मकाण्ड की उलझनो का कवीर की भाँति इन्होने विरोध किया और साधना का सहज पथ ग्रहण करने की प्रेरणा की।
'प्राधुनिक पाम्पुर (केसर-भूमि)।