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प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ
__ लाने दो, वे पास खडे सुख को पहिचानते ही नहीं। अपनायें कैसे । तुम पहिचान गये हो, अपनायो। उसके अपनाने से सोना, स्वास्थ्य, सुख तीनो हाथ पायेंगे। सुख से सुख और उस सुख से और सुख मिलेगा। सुख तुम में से फूट कर निकलने लगेगा। धीरे-धीरे मव तुम्हारे रास्ते पर आ जायेंगे, उन्होने अव तक सुख देखा ही नहीं। अब देखने को मिलेगा तो फिर क्यो न अपनायेंगे ?
श्रम से सुख है, मेहनत में मौज है। श्रम विका सुख गया। मेहनत विकी, मौज गई। पंसा पाया वह न खाया जाता है न पहिना जाता है। चीजे मोल लेते फिरो। भागे-भागे फिरो, जमीदार के पास, वजाज के पाम, बनिये के पाम, सिनेमाघरो में, स्कूलो में। लो, खराव चीजे और दो दुगने दाम। कभी सस्ता रोता था वार-वार, प्राज अकरा रोता है हजार वार ।
सुख चाहते हो तो वडा न सही, छोटामाही घर वनायो। चर्खा खरीदो, चाहे महँगाही मिले। कर्पा लगाओ, चाहे घर की छोटी सी कोठरी भी घिर जाये। जरूरी औजार खरीदो, चाहे एक दिन भूसा मरना पडे। खेत जोतोवोमो, चाहे खून पसीना एक हो जाये। गाय-घोडा रक्खो, चाहे रात को नीद न ले सको।
विक्री की चीज न बनो। विगड जानोगे। अगर विकनाही है तो काम की उपज को विको। सुख पाओगे।
खाने भर के लिए पैदा करो, थोडा ज्यादा हो जाय तो उसके बदले में उन्ही चीजो को लो, जो सचमुच तुम्हारे लिये जरूरी है और जिन्हें तुम पैदा करना नहीं जानते।
कमाना और वेचना, कमाना और गंवाना है । कमाना और खाना, कमाना और सुख पाना है।
काम के लिए काम करने में सुख कहाँ ? अपनो के लिए और अपने लिये काम करने मे सुख है। सुस की चीजे बनाने में सुख नही । अपने सुख की चीजे बनाने में सुख है । जव भी तुम पैसो से अपने को वेचते हो, अपनी मलमनमियत को भी माथ बेच देते हो। उमी के साथ सच्ची भली जिंदगी भी चली जाती है। मन और मस्तक सव विक जाते है। तुम न विकोगे, ये सब भी न विकेगे। भलमन्सी की बुनियादी जरुरते यानी कुटिया, जमीन, चर्खा, कर्घा वगैरह बनी रहेगी तो तुम भी बने रहोगे और सुख भी पाते रहोगे। सुख भलो के पास ही रहता है, वुरो के पास नहीं। जो वुरो के पास है वह सुख नही है, सुख की छाया है।
___गाडी में जुत कर वैल घास-दाना पा सकता है, कुछ मोटा भी हो सकता है, सुखी नही हो सकता। सुखी होने के लिए उसे घास-दाना जुटाना पडेगा, यानी निवुन्द होकर जगल मे फिर कर घास खाना होगा। तुम पैसा कमा रोटी-कपडा जुटा लो, सुख-सन्तोप नही पा सकते। रोटी-कपडा कमाने से मिलेगा, पैसा कमाने से नहीं।
रोटीन कमा कर पैसा कमाने मे एक और ऐव है । घर तीन-तेरह हो जाता है। घर जुटाने वाले माता-पिता और अविवाहित वच्चे अलग-अलग हो जाते है। वाप दफ्तर चल देता है और अगर मां पढ़ी-लिखी हुई तो वह स्कूल चल देती है, वालक घर में सनाथ होते हुए अनाथ हो जाते है। यह कोई घर है ? वासना के नाते जोडा झमेला है। वह वासना कुछ कुदरती तौर पर और कुछ दफ्तरो के वोझ से पिचपिचा कर ऐसी वेकार-सी रह गई है, जैसे वकरी के गले में लटकते हुए थन ।
घर को घर बनाने के लिए उसे कमाई की सस्था बनाना होगा। वह कोरी खपत की कोठरी न रह कर उपज का कारखाना बनेगी। आदमी मुंह से खाता है तो उसे हाथ से कमाना भी चाहिए। इसी तरह एक कुटुम्ब को एक आदमी बन जाना चाहिए, कोई खेत जोत-बो रहा है, कोई कात रहा है, कोई बुन रहा है, कोई खाना बना रहा है, कोई मकान चिन रहा है, कोई कुछ, और कोई कुछ। इधर-उधर मारे-मारे फिरने से यह जीवन सच्चा सुख देने वाला होगा।
आज भी गांव शहर से ज्यादा सुखी है । वे अपना दूध पैदा कर लेते है, मक्खन वना लेते हैं, रुई उगा लेते है, सब्जी वो लेते है, अनाज तैयार कर लेते है और सबसे बडी बात तो यह कि घर को वीरान नही होने देते। शहर