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बुन्देली लोकगीत लडकियो के उल्लासमय मधुर स्वर मे जिन्होने मामूलिया और हरजू के गीतो की निम्नलिखित पक्तियाँ ही सुन ली होगी, वे विना आकर्षित हुए न रहे होगे
मामुलिया के आये लिवोत्रा,
झमक चली मोरी मामुलिया
X उठी मोरे हर जू भये भुनसारे, गोअन के पट खोलो सकारे,
उठकें कर्नया प्यारे गइयां दोई,
झपट राधका दुहनी दीनी, काये की दातुन कार्य को लोटा, काये को नीर भर ल्याई जसोदा;
अज्जाझारे की दातुन सोने को लोटा,
सो जमुना जल भर ल्याई जसोदा। छोटी-छोटी लडकियो ने लीप-पोत कर अपने देवता की पूजा के लिए कितने सुन्दर उपचार किये है । देखिए, रग-विरगे वेल-बूटो और फूलो से सुशोभित चौक पूरे गये है, जाति-पात का भेद-भाव भुला कर सब कन्याएं आज एक सूत्र में आवद्ध हो तन्मयता से गा रही है
हेमाचल जू की कुंअरें लडायतें नारे सुप्रटा, सो गौरावाई नेरा तोरा नयो बेटी नौ विना नारे सुप्रटा,
उगई न हो बारे चंदा, हम घर हो लिपना पुतना; सास न हो दे दे धरिया,
ननद न हो चढ़े अटरिया, जी के फूल, तिली के दाने, चन्दा उगे बडे भुनसारे
xx कार्तिक मास का पवित्र महीना आ गया है । देखिए, गांव-गांव प्रात काल ही से स्त्रियां सरोवर की ओर भगवान कृष्ण की आराधना के निमित्त किस उल्लास से जा रही है और हिल-मिल कर कितने चाव और भक्ति-भाव से वे गा रही है
सखी री मै तो भई न ब्रज की मोर । कांहां रहती काहा चुनती काना करती किलोल, बन में राती बन फल खाती वनई में करती किलोल, उड उड पख गिरें घरनी में, वीने जुगलकिसोर, मोर पख को मुकुट बनानौ, बाँदै नन्दकिसोर, सखी री में तो भईन ब्रज की मोर। X
X गिरधारी मोरो वारी, गिर न पर। एक हात पर्वत लये ठांडी, दूजे हात के मुकट समारो, लये लकुटिया फिरें जसोदा, सोतन तन सब कोउ देउ सहारी;
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