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________________ ७७ 4 बुन्देली लोक-गीत साउन कजरियां जवई जे बेहे, अपनी बहिन को ल्याव लिवाय । गुउवा पिसाय माई करौ कलेवा, अपनी बहिन लिवावे जाँय; कहाँ बंधे मोरे उडन बछेरा, कहाँ टॅगी तरबार । श्रपनी० । सारन बँधे भईया उडन बछेरा, घुल्लन टंगी तरवार । कहाँ घरी भैया जीना पलेंचा, कहाँ घरी पोशाक, खिरकिन टंगी तोरे जीना पलैचा, उतई घरी पोशाक । श्रपनी० । X X ऊंचे अटा चढ़ हेरें वैना, मोरे भैया लिवऊन श्राये ; माई को बेटी बिसर गई, बाबुल की गई सुध भूल । जाय जो कइयौ उन बैन के जेठ सें, तुमरे सारे छिके पैले पार, छिके, छिके उन रैन दो, उन सारे को दियो लोटाय, जाय जो कइयो उन वैन के देउर सें, तुमरे सारे छिके पैले पार; छिके छिके उन रोन दो, उन सारे को दियौं लौटाय; जाय जो कइयौ उन हमरे बनेउ सें, तुमरे सारे छिके घर आव कौना सहर के बढ़ई बुला लये, काना को नाव झाँसी सहर के बढ़ई बुला लये, दतिया को नाव जाय जो कइयौ उन हमरे राजा सॅ, अपने सारन क डेरा दिवाउ; डराव; सारन जो बाँधी उडन बछेरा, डराव; घुल्लन टांगो तरवार, सुनो मोरी सासो वीरन श्रये, उने कहा रचौं जेउनार; X X ) ६०६
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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