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बुन्देलखण्ड को पत्र-पत्रिकाएँ बुन्देलखण्ड में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का सर्वप्रथम प्रयास सम्भवत सागर से ही प्रारम्भ हुआ था। सन् १८६२ ई० मे प० नारायणराव बालकृष्ण नाखरे ने पालकाट-प्रेम स्थापित करके सर्वप्रथम "विचार-वाहन' नामक मासिक पत्र निकाला था। यह पत्र थियोसोफी मत का प्रवर्तक था। कुछ वर्ष चलने के पश्चात् वन्द हो गया । इसके कुछ वर्ष वाद अनुमानत सन् १६०० ई० में नाखरे जी ने सागर से दूसरा पत्र-'प्रभात' निकाला। यह भी मासिक था। धार्मिक और सामाजिक विषयो पर इसमें लेख निकला करते थे। दो साल चल कर नाखरे जी की वीमारी के कारण कुछ समय के लिए वन्द हो गया। दो वर्ष पश्चात् उसका प्रकाशन पुन प्रारम्भ हुआ और फिर दो-तीन वर्ष तक चलता रहा ।
नाखरे जी के उक्त प्रयत्न के पश्चात् सागर मे एक सुदीर्घ समय तक पूर्ण सन्नाटा रहा । बीच में किसी भी पत्र-पत्रिका का जन्म नही हुआ। एक लम्बी निद्रा के पश्चात् सन् १९२३ से फिर कुछ पत्रो का निकलना प्रारम्भ हुआ, किन्तु ग्वेद है उनमें से एक भी पत्र स्थायी न हो सका। नीचे इन पत्रो का सक्षिप्त परिचय दिया जाता है।
१४-'उदय'-(साप्ताहिक) श्री देवेन्द्रनाथ मुकुर्जी के सम्पादकत्त्व में सन् १९२३ मे निकला। यह पत्र राष्ट्र-निर्माण, शिक्षाप्रचार तथा हिन्दूसगठन का प्रवल समर्थक था। लगभग दो वर्ष चल कर कर्जदार हो जाने के कारण अस्त हो गया।
१५-'वैनिक प्रकाश-सम्पादक-मास्टर बलदेवप्रसाद । सन् १९२३ में जव कि नागपुर में राष्ट्रीय झडामत्याग्रह चल रहा था। इस पत्र ने इस प्रान्त में काफी जाग्रति उत्पन्न की थी । झडा-सत्याग्रह के सम्बन्ध मे जेल अधिकारियो की इस पत्र ने कुछ सवाद-दाताओ के सवाद के आधार पर टीका की थी। जेल अधिकारियो ने पत्र और सम्पादक पर मान-हानि का दावा किया। परिणाम स्वरूप पत्र को अपनी प्रकाश की किरणें समेट कर सदा के लिए बन्द हो जाना पड़ा।
१६-'समालोचक' (साप्ताहिक) सचालक-स्वर्गीय पन्नालाल राघेलीय । सम्पादक भाई अब्दुलगनी । यह पत्र भी सन् १९२३ मे निकला और तीन साल चला । पत्र हिन्दू-मुस्लिम एकता का हामी था। स्वर्गीय गणेशशकर विद्यार्थी-सम्पादक 'प्रताप', प० माखनलाल चतुर्वेदी-सम्पादक 'कर्मवीर' और कर्मवीर प० सुन्दरलाल जी ने इस पत्र की नीति की यथेष्ट प्रशसा की थी। जब देश में खुले आम हिन्दू-मुस्लिम-दगा हो रहे थे, उस समय सागर के इस पत्र ने इन दगो की कडी टीका की थी। पत्र बन्द होने का कारण सम्पादक का जबलपुर चला जाना और वहां से 'हिन्दुस्थान' पत्र निकालना था। 'हिन्दुस्थान' अपने यौवन-काल में फल-फूल रहा था कि अकस्मात् मेरठ-पड्यन्त्र के मामले मे पत्र और सम्पादक की तलाशी हुई और उसमे कुछ आपत्तिजनक पत्र पकडे गये । घटनाचक्र में फंस कर पत्र वन्द हो गया।
१७–'स्वदेश-सन् १९२८ में साधुवर प० केशवरामचन्द्र खाडेकर के सम्पादकत्त्व में निकला और सन् १९३० में देशव्यापी सत्याग्रह छिड जाने पर सम्पादक के जेल चले जाने और पत्र में काफी घाटा होने के कारण बन्द हो गया।
१८-'देहाती दुनिया' साप्ताहिक । सम्पादक--भाई अब्दुलगनी। यह पत्र मन् १९३७ से देहात की जनता में जाग्रति करने और उन्हें कृषि-सम्बन्धी परामर्श देने के लिए अपना काम करता रहा। सन् १९४२ के आन्दोलन में सम्पादक के गिरफ्तार हो जाने पर वन्द हो गया।
१६--'बच्चो की दुनिया' (पाक्षिक)। सम्पादक-मास्टर वल्देवप्रसाद । सन् १९३८-३६ में निकला। सन् १९४२ में सम्पादक के जेल जाने तथा कागज़ के अभाव में बन्द हो गया।
उक्त पत्रो के अतिरिक्त कई एक स्थानो से कुछ छोटे-मोटे पत्र निकलते है । जैसे, हमीरपुर से 'पुकार', कौंच से 'वीरेन्द्र' तथा उरई से 'आनन्द' । इस पिछडे प्रान्त में जन-जाग्रति का कार्य करने के लिए प्रभावशाली पत्रो के प्रकाशन की आवश्यकता है। यह निर्विवाद सत्य है कि राजनैतिक, सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति