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प्रमी-अभिनंदन-प्रथ -'कर्मवीर'-हिन्दी साप्ताहिक 'कर्मवीर' जो आजकल प० माखनलाल जी चतुर्वेदी के सम्पादकत्व में खडवा से प्रकागित हो रहा है, प्रारम्भ मे-शायद १९१६ मे-जबलपुर से ही प्रकाशित होता था। उस समय भी चतुर्वेदी जी ही इसके मम्पादक थे। कुछ समय के वाद चतुर्वेदी जी इस पत्र को अपना निजी पत्र बना कर खडवा ले गये और आज तक वही से इसे प्रकाशित कर रहे है। लेकिन किसी समय राष्ट्रीयता का शखनाद करने वाला 'कर्मवीर' आज अपने प्राचीन महत्त्व को खो बैठा है।
-शुभचिंतक-सन् १९३७ में विजयदशमी के अवसर पर इस पत्र का प्रकाशन साप्ताहिक के रूप में प्रारम्भ किया गया था। इसके सम्पादक थे जवलपुर के सुप्रसिद्ध कथाकार स्वर्गीय श्री मगलप्रसाद जी विश्वकर्मा । लगभग तीन वर्ष तक विश्वकर्मा जी ने इसका सम्पादन योग्यता-पूर्वक किया। उनके निधन के बाद श्री नाथूराम जी शुक्ल कुछ समय तक इसके सम्पादक रहे, लेकिन इसके सचालक श्री वालगोविन्द गुप्त से मतभेद हो जाने के कारण शुक्ल जी ने उसे छोड दिया। इमके वाद से अव तक श्री वालगोविन्द गुप्त का नाम सम्पादक की हैसियत मे प्रकाशित हो रहा है । अव यह पत्र अर्द्ध साप्ताहिक के रूप मे निकलता है।
१०-'शक्ति'-श्री नाथूराम शुक्ल के सम्पादकत्त्व में साप्ताहिक 'शक्ति' भी पिछले कई वर्षों से प्रकाशित हो रही है, लेकिन जबलपुर के वाहर लोग इसे जानते भी नहीं। हिन्दू महासभा के उद्देश्यो का समर्थन ही इसकी नीति है।
११-'महावीर-सन् १९३६ मे इन पक्तियो के लेखक के ही सम्पादकत्त्व में इस वालोपयोगी मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। इसके सचालक थे श्री भुवनेन्द्र 'विश्व', जिनकी 'सरल जैन-ग्रन्य-माला', जवलपुर के जैन समाज मे अपना विशेष महत्त्व रखती है। लगभग एक वर्ष तक इसका प्रकाशन सफलतापूर्वक हुआ। बाद मे सम्पादक और सचालक में मतभेद हो जाने के कारण इसके दो-चार अक स्वय सचालक महोदय ने अपने ही सम्पादकत्त्व में प्रकाशित किये, लेकिन पत्र को वह जीवित न रख सके।.
१२-मधुकर'-जवलपुर के बाद पत्र-पत्रिकाओ के प्रकाशन का जहां तक सम्बन्ध है, ओरछा राज्य की राजधानी टीकमगढ का नाम उल्लेखनीय है। हिन्दी के यशस्वी पत्रकार प० बनारसीदास जी चतुर्वेदी 'विशाल भारत' का सम्पादन छोड कर टीकमगढ आये और श्री वीरेन्द्र-केशव-साहित्य परिषद् के तत्त्वावधान में टीकमगढ से 'मधुकर' नामक पाक्षिक पत्र का अक्तूवर १९४० से प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्र ने बुन्देलखड के प्राचीन और वर्तमान रूप को प्रकाश में लाने का सफलता-पूर्वक उद्योग किया है। श्री चतुर्वेदी जी ने समय-समय पर अनेक आन्दोलन चलाये है और उनमे सफलता भी प्राप्त की है। 'मधुकर' द्वारा भी उन्होने कुछ आन्दोलन चलाये है जिनमें प्रमुख बुन्देलखण्ड-प्रान्त-निर्माण तथा जनपद-आन्दोलन है। यह पत्र चार वर्ष तक बुन्देलखण्ड तक सीमित रहा । अव इसका क्षेत्र व्यापक हो गया है ।
१३-'लोकवार्ता'-'लोकवार्ता-परिषद्' टीकमगढ के तत्त्वावधान में हिन्दी के सुपरिचित लेखक श्री कृष्णानन्द गुप्त के सम्पादकत्त्व में जून १९४४ में इसका प्रथमाक प्रकाशित हुआ था। पत्रिका त्रैमासिक है। देश के विभिन्न प्रान्तो की लोक-वार्ताओ पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से इस पत्रिका ने जिस दिशा में कदम बढाया है, वह वाछनीय और स्तुत्य है । पत्रिका का क्षेत्र अभी बुन्देलखण्ड तक ही सीमित है, लेकिन आगे चल कर इसका क्षेत्र व्यापक होने की आशा है।
इन पत्रो के अतिरिक्त दमोह से 'ग्राम-राम' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन हुआ, लेकिन कुछ समय के बाद वह भी बन्द हो गया। श्री शरसौदे जी ने भी 'मोहनी' और 'पैसा' नाम के मासिक पाक्षिक पत्रो का प्रकाशन किया, किन्तु ये पत्र कुछ ही अक प्रकाशित कर बन्द हो गए।
झांसी से 'स्वतन्त्र साप्ताहिक और 'जागरण' दैनिक प्रकाशित होते है और कभी-कभी 'स्वाधीन' के भी दर्शन हो जाते है।