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बुन्देलखण्ड के दर्शनीय र [ ऐतिहासिक, प्राकृतिक और धार्मिक ]
१. प्रथम भाग
श्री राधाचरण गोस्वामी एम० ए० 'बुन्देलखण्ड' नाम कोई तीन-चार सौ वर्ष से प्रयोग में आया है। इसके प्रथम इस प्रदेश का नाम जिजाकभुक्ति, जीजमुक्ति या जिझौति रहा है, जो यजुर्होति का अपभ्रश है। इस छोटे से प्रदेश में ऐतिहासिक दृष्टि से ससार को बहुत कुछ भेंट करने की सामग्री विद्यमान है, पर प्राय वनस्थली है और अगम्य दुरूह गम्य स्थान है। शताब्दियो से अदूरदर्शी शासको के द्वारा शासित रहने के कारण यह अमूल्य सामग्री नष्ट हो चुकी है। समय और मनुष्य के आघात-प्रत्याघात से जो कुछ शेष है, वह न केवल इस छोटे प्रदेश को, अपितु समस्त भारतवर्ष को विश्वकला और दर्शन की गैलरी में उच्च स्थान दिलाने के लिए पर्याप्त है।
(१) ऐतिहासिक स्थान ।
१ देवगढ़-झासी से वबई जाने वाली लाइन पर जाखलौन स्टेशन से नौ मील पर जगल के बीच बेतवा नदी के कूल पर स्थित है। यहाँ पर हिंदू और जैन मदिरो का समूह है। इनमें विष्णु-मदिर कला की दृष्टि से विख्यात है । यह चतुर्थ शताब्दी के प्रतिम भाग से लेकर पांचवी के प्रारभ के समय का माना जाता है। रायवहादुर दयाराम साहनी ने वहाँ पर १९१७ ई० मे शिलालेख देखा था, जिसमे लिखा था कि 'भगवत् गोविन्द ने केशवपुर से अधिपति देव के चरणो मे इस स्तभ का दान किया था।' यह गोविन्द सम्राट् चन्द्रगुप्त के पुत्र परम भागवत गोविन्द जान पडते है। विष्णु मदिर का विशद वर्णन इस ग्रथ मे अन्यत्र हुआ है।
२ खजुराहो-झासी-मानिकपुर रेल की लाइन पर हरपालपुर या महोवा से छत्तरपुर जाना पड़ता है । वह कई मार्गों का जकशन है। छत्तरपुर राज की वही राजधानी है। इसी के अन्तर्गत राजनगर तहसील मे चन्देलकालीन उत्कृष्ट शिल्पकला से पूर्ण मदिरो का समूह खजुराहो मे है । छत्तरपुर से सतना वाली सड़क पर बीस मील चलकर वमीठा पुलिस थाना है। वहाँ से राजनगर को, जो दस मील है, मार्ग जाता है । सातवें मील पर खजुराहो है। मोटर हरपालपुर से छत्तरपुर (तैतीस मील) और वहाँ से खजुराहो होती हुई राजनगर जाती है । यह भी सुविधा है कि उसी समय राजनगर से वह वापिस आती है। हमारे इस छोटे से प्रदेश मे खजुराहो के मदिरो की उन्नत कला की कल्पना स्वय देखकर ही की जा सकती है। चित्रो के खजुराहो और प्रत्यक्ष में वडा अन्तर है। खजुराहों की कला उस युग की है, जब हिंदू-सभ्यता चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी। सुख, सम्पदा और समृद्धि ने शासको और नागरिको को विलासप्रिय बना दिया था। यहाँ के मदिरो मे देवगढ़ के मदिर के समान सुरुचि तो है, पर सयम नहीं। नारी के विलासप्रिय सौंदर्य की विविध भावभगी मदिर के अदर और बाहरी शिलाखडो, द्वारो, तोरणो, स्तभो और शिखरो पर सभी जगह अकित है। प्रत्येक मूर्ति और अभिप्राय (motuf) के चित्रण में कलाकारो ने किया है। पत्थर की मूर्तियां दर्शको को मोहित कर देती है। प्रधान मदिर ये है