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बुन्देलखण्ड के इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री
५७३ औरगजेब के सिंहासनारुढ होने के साथ ही बुन्देलखड का एक महत्वपूर्ण काल प्रारभ हुआ और सन् १८१८ ई० तक यह परिवर्तन-काल चलता ही रहा । यद्यपि इस काल की पिछली शताब्दी बहुत ही गौरवपूर्ण न थी, फिर भी ऐतिहासिक घटनाओ एव निरतर होनेवाले परिवर्तनो के कारण ही इस काल का महत्व बना रहा और इस निकट भूत का इतिहास ठीक-ठीक समझे बिना इस प्रदेश के भावी राजनैतिक मार्ग को सरलतापूर्वक निश्चित करना सभव नही। बुन्देलखण्ड प्रान्त की आज की राजनैतिक परिस्थिति का स्वरूप इन्ही एक सौ सत्तर वर्षों के इसी परिवर्तनकाल में निश्चित हुआ था और आज वुन्देलखण्ड के सम्मुख समुपस्थित होनेवाली कई एक कठिनाइयो अथवा विरोधो का वीजारोपण इन्ही बरसो मे हुआ था। यह सत्य है कि सन् १८१८ ई० के बाद इधर कोई सवा सौ वर्ष वीत चुके है, जगद्व्यापी महत्वपूर्ण घटनाओ, नवीन राजनैतिक और आर्थिक प्रवृत्तियो के फलस्वरूप अव परिस्थिति मे बहुत ही फेरफार हो गया है, सारा वातावरण ही पूर्णतया वदल गया है, किन्तु फिर भी आज जो-जो कठिनाइयां उठ रही है, वे उसी परिवर्तन-युग की देन है और उनको सुलझाने के लिए यह अत्यावश्यक है कि उन कठिनाइयो को ठीक तरह समझ कर उनको समूल नष्ट किया जाय । उस परिवर्तन-काल के प्रामाणिक इतिहास का अध्ययन इस ओर बहुत ही सहायक हो सकता है।
यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि बुन्देलखण्ड के इतिहासकार यह न सोच ले कि इस लेख मे तत्कालीन सारी ऐतिहासिक सामग्री की विवेचना की जा चुकी है। पूर्वोक्त सामग्री के अतिरिक्त और भी बहुत सी ऐसी सामग्री है,जो सुलभ है या जिसका बुन्देलखण्ड के इतिहास से इतना सीधा सवध है कि उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। बुन्देलखण्ड में भी अभी तक स्थानीय ऐतिहासिक सामग्री की पूरी-पूरी खोज नही हुई है, जिसके विना काम नहीं चलेगा। इस स्थानीय सामग्री की सहायता से ही हमे स्थानीय महत्व की ऐतिहासिक घटनामो आदि का पूर्णरूपेण पता लगेगा।
इस लेख मे तो केवल उस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री की कुछ विवेचना की गई है, जो प्राय सुलभ नहीं है और न जिसका वुन्देलखण्ड के इतिहास से कोई सीधा सवध ही दीख पडता है । अतएव वुन्देलखण्ड के इतिहासकारो का उसकी ओर आसानी से ध्यान आकर्पित न होगा । यह यथास्थान बताया ही जा चुका है कि यो तो यह सामग्री सुलभसाध्य न थी, किंतु बहुत सी सामग्री की नकले हमारे निजी संग्रहालय मे सुरक्षित है। वे अब इतिहासकारो को सुलभता से प्राप्त हो सकती है । वुन्देलसण्ड के इस काल के इतिहास का अध्ययन करने वाले विद्वानो से मेरा विशेष प्राग्रह होगा कि वे इस सामग्री का पूर्ण उपयोग करे।
बुन्देलखण्ड जैसे प्रदेश के इतिहास की सामग्री एकत्रित करना कोई सरल काम नही। यह प्रान्त शताब्दियो मे खण्ड-खण्ड में विभक्त ही रहा है। जब कभी भी एकता स्थापित हुई, वह बहुत काल के लिए स्थायी न रही। राजनैतिक दृष्टि से या शासन के लिए भी इस प्रदेश का सगठन नही हुआ तथा इस प्रदेश के इतिहास की सामग्री एकत्र करने अथवा उसकी प्रान्तीय एकता को देखते हुए उस सामग्री का अध्ययन करने की ओर अब तक विशेप ध्यान नही दिया गया है। गुजरात एव मालवा जैस प्रदेशो की राजनैतिक एकता शताब्दियो तक अक्षुण्ण बनी रही। उन प्रान्तो मे भी, इस राजनैतिक एकता का अन्त होते ही, ऐतिहासिक सामग्री के अध्ययन का अभाव तथा उस सामग्री के सचित न किए जाने की प्रवृत्ति चल पड़ी है। उन्ही कठिनाइयो का बुन्देलखण्ड के समान सर्वदा विभवत रहने वाले प्रान्त के इतिहास के लिए बहुत अधिक मात्रा में अनुभव होना स्वाभाविक ही है । आशा की जाती है कि इन कठिनाइयो का सामना करते हुए वुन्देलखण्ड के इतिहासकार इस युग का वृहत् क्रमवद्ध इतिहास लिखकर भारतीय इतिहास की एक बडी कमी को पूरा करेंगे। सीतामऊ]