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नल दवदन्ती-चरित्र [अज्ञात कविकृत सोलहवीं शताब्दी का प्राचीन गुर्जर काव्य
सपादक-प्रो० भोगीलाल जयचन्दभाई सांडेसरा एम० ए० नल-दमयन्ती के सुप्रसिद्ध कथानक का सक्षिप्त वर्णन एक छोटे से प्राचीन गुजराती काव्य के रूप में हमें प्राप्त हुआ है। पाटन-निवासी प० अमृतलाल मोहनलाल भोजक के सग्रह के एक हस्तलिखित गुटके में यह काव्य है और उसके १०५ से १०७ तक के पृष्ठो में वह लिखा हुआ है । काव्य के अत में प्रतिलिपि करने की तिथि नही है, पर गुटके के अन्य काव्यो के अत में तिथियां दी हुई है। उनसे पता चलता है कि गुटके के सव काव्यो की प्रतिलिपि सवत् १५४८ से १५६० के बीच की गई है। अत यह मानना उचित प्रतीत होता है कि उक्त 'नल-दवदन्ती-चरित्र' की प्रतिलिपि भी उसी काल में हुई होगी।
काव्य के अत में उसके रचयिता का नाम नहीं है और न रचना सवत् । पाटण के सागर के उपाश्रय-भडार मे इस काव्य की तीन पृष्ठ की एक हस्तलिखित प्रति है, जिसके अत मे लेखन सवत् १५३६ दिया है। अत यह काव्य मवत् १५३६ से पहले का है, यह निश्चित है। उसके रचनाकाल की पूर्वमर्यादा निश्चित करने का कोई साधन नहीं है, किन्तु उसकी भाषा के स्वरूप से ऐसा प्रतीत होता है कि उसका निर्माण विक्रम की सोलहवी शताब्दी में हुआ होगा।
___ इस काव्य के रचयिता जैन है। गुजरात की जैन वनेतर जनता मे नल-दमयन्ती की कथा अत्यत लोकप्रिय है। अनेको कवियो ने इस कथानक के आधार पर काव्यो की रचना की है। जैनेतर कवियो मे विक्रम की सोलहवी शताब्दी के पूर्वार्ध मे भालण ने और उत्तरार्ध में नाकर ने एव अठारहवी शताब्दी मे प्रेमानन्द ने तद्विषयक काव्यग्रन्थ तैयार किये है। उनमें प्रेमानन्द कृत नलाख्यान तो अपने विशिष्ट काव्य गुणो के कारण गुजरात के साहित्य-मर्मज्ञो तथा सामान्य जन-समाज में अपूर्व लोकप्रियता का भाजन हो गया है।
जैन कवियो मे प्रस्तुत काव्य के अज्ञात रचयिता के अतिरिक्त ऋषिवर्द्धन सूरिने सवत् १५१२ में 'नल दवदन्ती रास-नलराज चउपई', वाचक नयसुन्दर ने सवत् १६६५ में 'नल दमयन्ती रास', वाचक मेघराज ने सवत् १६६४ में 'नलदमयन्ती रास', वाचक समयसुन्दर ने सवत् १६७३ में 'नल दवदन्ती रास' और पालनपुर के श्रीमाली जाति के वणिक वासण सुत भीम ने सवत् १६२७ में नलाख्यान की रचना की है। इन सब रचनाओ मे भी प्राचीनता की दृष्टि से उक्त काव्य सबसे पुराना है । यद्यपि काव्य की दृष्टि से यह विल्कुल सामान्य कृति है, पर भापा और शैली के विचार से इसका प्रकाशन निस्सदेह लाभदायक सिद्ध होगा। इसकी हस्तलिखित प्रति के उपयोग की अनुमति के लिए हम प० अमृतलाल भोजक के आभारी है। मूल काव्य इस प्रकार है
॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ सरसति सामणि सगुरु पाय हीयडइ समरेवि, कर जोडी सासण देवि अबिक पणमेवि, नल-दवदती तणु रास भावइ पभणेई,
'देखिये उस प्रति की पुष्पिका-"इति श्री नलदमयन्ती रास. समाप्त ॥ सवत् १५३६ वर्षे लिखित ॥ प० समयरलगणि शिष्य हेमसमयगणि लिषत ॥