________________
५२६
प्रेमी-अभिनदन-प्रय में साहित्यिकता का सूत्रपात किया । आपके 'भूकनायक', 'प्रेमशोधन', 'मतिविकार' आदि नाटको ने अद्भुत रम्यता (रोमास) की नाटको मे अवतारणा की, परन्तु उनके नाटको मे यथार्थ का निरुपण नहीं था। कृत्रिमता भी बहुत कुछ थी । कृष्णा जी प्रभाकर खाडिलकर ने 'कीचकवध' (जो मरकार द्वारा जब्त किया गया) से 'मेनका' तक अनेक पौराणिक-सामाजिक नाटक रचे, जिनमे 'मानापमान' (१९११ ई०) मवसे अधिक लोकप्रिय हुआ । इतिहास अथवा पुराण की कथा लेकर उसे आधुनिक काल और समस्याओ पर घटित करने की साडिलकर की शैली बहुत ही तीक्ष्ण और प्रभावशाली थी। माधव नारायण जोशी ने मराठी नाटको को मामाजिक यथार्थवाद मिखाया। परिहास के अवगुठन में तीव्र सामाजिक व्यग आपने लिखे, जिनमे सगीत विनोद, मगीत स्थानिक स्वराज्य अथवा म्युनिमिपलिटो और सगोत वहाडचा पाटोल बहुत प्रसिद्ध है।
नाटक के क्षेत्र में वैसे तो अनेकानेक प्रयोग हुए । शेक्सपीअर के अनुवादो (बाटिका, झुझारराव) से लगा कर करेल कपैक की 'मदर' (आई) नाटिका और इसन 'डाल्स हाउम' (घरकुल) के अनुवादी तक कई चीजे यूरोपीय रगमच मे मराठी मच ने ली। परतुप्रातीय भाषायोमे से अन्य किमी भाषा के नाटक मराठी में नहीं के बराबर अनुवादित हुए। हिंदी पर जिस प्रकार वगला को छाया स्पष्ट है, (डी० एल० राय को नाटको मे और शरच्चन्द्र चट्टोपाध्यायका उपन्यास में तया रवीद्रनाथ को काव्य मे) मराठी मे वकिम, शरच्चन्द्र के अनुवाद तो हुए, परतु नाटको म कही भी वगाली का प्रभाव नहीं दिखाई देता। महायुद्धोत्तर मराठी नाटक के इतिहास में तीन नामो का उल्लेख प्रमुख रूप से करना होगा। गडकरी, वरेरकर, अत्रे। गडकरी एक प्रकार से हिंदी के 'प्रसाद' थे। दोनो की प्रतिभा का स्वस्प रोमेंटिक था। दोनो की शैली काव्यात्मक थी। अतर था तो इतना ही कि जहाँ 'प्रसाद' ने बौद्व कालीन ऐतिहामिक वातावरण का विशेष प्राश्रय लिया, गडकरी ने सामाजिक प्रसगो की और ममस्याग्रो की ही विशेष विवेचना की। 'प्रेम सन्यास' मे विधवा विवाह का, 'पुण्यप्रभाव' मे सतीत्व के प्रताप का, 'एकच प्याला' में शराव और उसके दुष्परिणाम का चित्र गडकरी ने उपस्थित किया। गडकरी के वाद वैसे तो कई नाटककार हुए, जिन्होने मगठीरगमच को उर्वर बनाया और इसका समस्त श्रेय केवल नाटकलेखको को ही नहीं, अपितु नट, गायक और उस मनोरजन में मक्रिय योग देने वालो जनता को भी दिया जाना चाहिए। फिर भी वाल गवर्व (नारायणराव राजहम नामक अभिनेता को स्व० लोकमान्य तिलक ने इस पदवो से विभूषित किया था) और उनको कपनी द्वारा खेले गये आधुनिक राजनैतिक प्राशय से भरे पौराणिक कयानको वाले नाटको को विशेष श्रेय है। वीर वामनराव जोशी पीर सावरकर, अच्युत वलवत कोल्हटकर और टिपनीम तथा २० अ० शुक्ल आदि के प्रोजस्वी ऐतिहासिक नाटका ने पर्याप्त ग्याति प्राप्त की। इस क्षेत्र में नवयुग उपस्थित करने का समस्त श्रेय भार्गवराम विट्ठल उर्फ मामा वरेरकर को है। आपने इव्सन को शैलो को अपनाकर एक नई नारो-सृष्टि निर्मित को । राष्ट्रीय जागरण मे जो महयोग स्त्रियो से मिला उसका श्रेय मामा को 'सफेजेट' नाटिकायो को है । प्रापन मिल-मजदूरो के प्रश्न, मठो के और वुवागाही (यानी गुरुडम चलानेवाले महन्तो के) प्रश्न, अछूतोद्धार और खद्दर के प्रश्न अपने नाटको द्वारा सुलझाने का प्रयत्न किया। स्पष्टत प्रचार उनके नाटको को आत्मा वन गई। नाटिका (एकाकी) सप्रदाय मराठो में आप ही की प्रेरणा से लोकप्रिय बना। आप समय के साथ प्रगतिशील हुए और अभी हाल में 'मिगापुरातून' नामक नाटक में साम्यवादी विचारसरणि का भी उन्होने पोपण किया है।
____जहाँ सामाजिक प्रश्नो की ओर रोमेटिक और ययार्थवादी दृष्टिकोणो से गडकरी तया वरेरकर ने मराठी रगमच को आकृष्ट किया, अत्रे ने एक विलकुल नये ढग से (जिसे कुछ हद तक बनार्ड शा का ढग कहना चाहिए), प्रश्नो का परिहासात्मक पहल उपस्थित किया। मा० ना० जोशो ने जो 'म्युन्सिपैलिटो' का घोर व्यग-चित्र अपने स्थानिक स्वराज्य मे उपस्थित किया था, उसी को कुछ आगे बढाकर अत्रे ने अपने नाटको मे हास्य (परिस्थितिजन्य, शब्दजन्य तया चरित्रजन्य), अतिरेक, समाजमोमासा, विचार प्रक्षोमन का एक विचित्र 'मिक्स्चर' मराठी मचपर प्रस्तुत किया, जिसे जनता ने वर्षों तक बहुत ही सराहा । 'साष्टाग नमस्कार मे प्रत्येक पात्र एक-एक सन्त