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मराठी साहित्य की कहानी
५२५ 'नफूलालकार' नामक एक व्यग काव्य के अलावा श्रापकी स्फुट कविता 'गलाका' 'गज्जलाजली', 'स्वप्नरजन' तथा उद्बोधन मयुमाधवी' म मगहीत है । आपने उन्मुक्त प्रेम का ममथन, मामाजिक दम का परिस्फोट, राष्ट्रीय कर्तव्यो के प्रति तो दिया ही, गाथ ही अपनी कविता द्वारा मगठी में एक नवीन गली, एक नवीन भापा -मपदा को, प्रचलित किया। रविकिरणमडल में प्रापको मौलिकता मवमे अधिक प्रकाशमान थी। कई कविताओं के रेकार्ड भी बन गये है।
यगवत ने भी राष्ट्रीय पोर समाज-सुधार पर की कविताएं लिया। वदीगाला' नामक एक खड-काव्य यरवदा के वच्ची की जेल पर और अपराधी बच्चों पर तया'जयमगला' विल्हण के प्रेमप्रमग को लेकर लिखा। इनके अलावा हाल में बदीदा नरेश के गज्याराहण प्रसग पर 'काव्यकिरीट'खडकाव्य लिखा, जिसमे वे वदीदा के राजकवि नियुक्त हुए। परन्तु उन पड-कायों में उनकी प्रतिभा इतनी नहीं चमक उठनी जितनी कि गीत-काव्यात्मक फुटकर रचनायो मं । 'यगीधन', 'यगवतो', 'यगोनिधि' 'यगोगध', आदि आपके कई मग्रह प्रकागित हुए है, जिनमे से 'आई', 'गुलामाचे गाहाणे', 'नजगणा,''भैनगणी', विगिविगी चाल', 'घर', 'प्रेमाचीदौलत' आदि आपके कई गीत बहुत लारूप्रिय हए है । कुछ रचनाएँ प्रापने ग्रामीण भापा मे की है। बच्चों के मन का भी बहुत सुन्दर चित्रण कई कविनाया में किया गया है, यया 'माल नको गा', 'इदुकना', 'कल्याचा भात' आदि।।
रविकिरणमडल के अन्य कवि इतने प्रसिद्ध नहीं हुए। 'गिरीश' (काचनगगा, फलभार, अभागी कमल, श्रावगः, गुधा) अवश्य अपने पड-काव्यों के कारण अधिक सफल कवि माने जाते है । रविकिरणमडल के सभी कवियों ने अधिकाग प्रेम-कविताएँ निमी। म्वतन-प्रेम की प्रगमा उनकी रचनायो में मिली है, परतु जहाँ एक ओर उन्होंने मगठी कविता म नये-नये विषयो पर रचनाएँ करने की ययार्यवादिता बढाई, वहा दूसरी पोर कविता को कुछ नई ढियो में बांध दाला । रविकिरणपरिपाटी मराठी मे भावगीत के रूप मे कई वर्षों तक ऐसी चलती रही कि उसकी प्रतिनिया में एक और माधवानुज, दु० प्रा० तिवारी, टेकाडे, वेहेरे आदि ने प्रोजपूर्ण ऐतिहासिक सग्रामगीत गाना शुरू किये (जो स्पप्टन राष्ट्रीयता प्रचार मे भरे हुए अधिक थे, काव्य उनमें कम था) दूमरी ओर प्रि० प्र० के० प्रये उर्फ केशवकुमार ने अपनी पैरोटियो की प्रथा चलाई,जो 'विडवन काव्य' के नाम से बहुत ही प्रचलित हुई। 'भेंडूची फु' नामक एक अकेले मग्रह ने मराठी कविता में परिहासपूर्णता का वह प्रवाह बहा दिया कि एक दशक के अदर-अदर कविता एकदम उपेक्षित बन गई।
अब इघर महायुद्ध के कुछ पूर्व मे कवियो म पुनर्चेतना जाग्रत हुई है। प्रा० रा० देशपाडे 'अनिल' इस नई काव्य-प्रेरणा के प्रधान उन्नायक है। कमुमाग्रज (विशाया), बोरकर (जोग्नमगीत) पु० गि० रेगे, कारे, वसत, वैद्य, वगत चिंघटे, ना. घ. देशपांडे, गजा बढे, गरच्चद्र मुक्तिबोध आदि कई नये कवि आगे आ रहे है, जो कि मराठी के इम अनुर्वर प्रात को मवार रहे है। इनकी उज्ज्वल प्रतिभा का भविप्य अभी अनिर्णीत है। २ नाटक.
काव्य मे जुटा हुआ माहित्य का दूसरा प्रधानाग है नाटक । सौभाग्य से मराठी का रगमच बहुत विकसित अवस्था में रहा है। हाल में ही उसका शतमावत्सरिक उत्मय भी महाराष्ट्र में सर्वत्र मनाया गया । इस रगभूमि के विकाम का श्रेय जैमे मफल अभिनेता, रमिक प्रेक्षक और उत्तम गायको को है, वैसे ही उच्च कोटि के नाटककारो को भी है। आधुनिक नाटक का प्रारभ वैसे ही पौगणिक ऐतिहासिक कथावस्तु को लेकर हुआ, जैसे अन्य भापायो में। मन् १८८२ के बाद पच्चीस वर्ष तक मगीत का रगमच पर बहुत विकास होता रहा । अण्णा किर्लोस्कर महाराष्ट्र मे रगभूमि को सर्वाधिक लोकप्रिय करने वाले नट-नाटककार के पश्चात् देवल को यह श्रेय देना चाहिए कि उन्होने नाटको को उनके प्राचीन केंचुल में मे बाहर निकाल कर खुली हवा में सामाजिक प्रश्नो की चर्चा में मलग्न किया। वृद्धविवाह की प्रथा पर 'शारदा' नामक उनका नाटक बहुत ही लोकप्रिय रहा। श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर ने नाटको