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प्रेमी-अभिनदन- प्रथ
प्रथ
लेखक
१ प्रतिभासा धन - प्रो० ना० सी० फडके २ छन्दो - रचना - डॉ० मा० त्रि० पटवर्धन ३ हास्यविनोदमीमामा -० चिं० केलकर ४ अभिनव काव्यप्रकाश - रा० श्री० जोग
५ सौदर्यशोध व आनदबोध रा० श्री० जोग
६ काव्यचर्चा अनेक लेखक
७ वाड्मयीन महात्मता -- वा० सी० मर्ढेकर
८ कलेची क्षितिज - प्रभाकर पाध्ये
& रसविमर्श - डॉ० के० ना० वाटवे
१० चरित्र, आत्मचरित्र, टीका-प्रो० जोशी और प्रभाकर माचवे
साहित्य के इतिहास मवधी कई ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं, फिर भी कोई एक पुस्तक ऐसी नही, जिसमें मराठी साहित्य का पूर्ण इतिहास सक्षेप में मिल जाय। वैसे मराठी वाङ्मयाचा इतिहास ( ३ भाग ) -ल० रा० पागारकर, अर्वाचीन मराठी - कुलकर्णी, पारसनीस, महाराष्ट्र सारस्वत - वि० ल० भावे, अर्वाचीन मराठी वाङ्मयसेवक --- ग० दे० खानोलकर, मराठी साहित्य समालोचन - वि० ह० सरवटे श्रादि ग्रंथ बहुमूल्य है श्रोर इन्हीं की महायता से यह लेख लिखा गया है ।
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इनके अतिरिक्त मराठी साहित्य में गभीर गद्य के परिपुष्ट अग है राजनीति, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र तथा इतिहास सशोधन सवधी ग्रंथ । इन भवका परिचय इस छोटे से लेख में सभव नहीं । कुछ उल्लेखनी है आधुनिक भारत -जावडेकर, लढाऊ राजकारण - करदीकर, पाकिस्तान --- प्रभाकर पाध्ये, भारतीय समाजशास्त्र — डॉ० केलकर, ग्यानवाचे अर्थशास्त्र - गाडगील अर्थशास्त्र की अनर्थ - शास्त्र -- आचार्य जावडेकर | मनोविज्ञान व शिक्षणशास्त्र पर श्रठवले, मा० घो० कर्वे, वाडेकर, प्रो० फडके, कारखानीस प्रादि के प्रथ बहुत उपयोगी है। इतिहाससंशोधन के क्षेत्र में प्रो० राजवाडे, पारसनीस, डॉ० भाडारकर, काशीनाथ पत, लेने और गोविन्द सखाराम सरदेसाई ये नाम स्वयप्रकाशी है । मराठी के गाधीवादी लेखको का परिचय एक स्वतंत्र विषय होगा। फिर भी उनमें प्रमुख विनोवा, कालेलकर, श्राचार्य भागवत, सानेगुरुजी आदि है ।
साहित्य के ललित श्रग (काव्य, नाटक, उपन्यास, धारयायिकादि) का विशेष रूप से विकास हुआ है । इनका विस्तारपूर्वक विवेचन यहाँ अनुपयुक्त न होगा । नीचे मराठी के प्राधुनिक साहित्यप्रवाहो तथा प्रमुख लेखको और उनकी रचनाओ (जिनके नाम ब्रैकटो मे दिये जावेगे) का एक विहगम उल्लेख मात्र में कर देना चाहता हूँ, जिससे हिंदी भाषी पाठक मराठी साहित्य की वर्तमान श्री वृद्धि से परिचित हो सकें ।
१ काव्य
प्रथमोत्यान
१८१८ ईस्वी तक मराठी कविता जो बहुत उन्नति पर थी धीरे-धीरे उसमें सामाजिक राजनैतिक परिपार्श्व अनुसार पतनोन्मुखता दिखाई देने लगी । शाहीर कवि -- जो कि जनता मे लोकप्रिय 'तमाशे' (एक प्रकार का काव्यपाठ) करते, वे उत्तान शृगार पर लावनियाँ अधिक लिखने लगे । 'पोवाडे' - रचना की प्रवृत्ति भी थी तो केवल श्रतीतोन्मुखी । राजनैतिक दृष्टि से यह बहुत आन्दोलनपूर्ण काल था । अस्थिर जीवन के कारण कविता मे किसी स्थिर प्रवृत्ति के दर्शन कम मिलते हैं । अग्रेजी राज्य की स्थापना के पश्चात् सन् १८८५ से मराठी की आधुनिक कविता का आरभ मान सकते हैं । जैसे उर्दू में हाली या हिंदी में भारतेंदु या गुजराती मे नर्मद, वैसे मराठी में