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मराठी साहित्य की कहानी
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और सपादन नागपुर के इतिहासज्ञ श्रौर माहित्य - शिक्षक श्री ० वनहट्टी जी ने 'विष्णुपदी' नामक ग्रथ मे किया है । विष्णुशास्त्री की भाषाशैली प्रोढ, रममय और प्रोजपूर्ण है । प्रतिपक्षी का विरोध करते समय व्यग-परिहास आदि अत्रो का उन्होने बहुतायत मे उपयोग किया है । यह प्रभावशाली लेखक केवल ३२ वर्ष जीवित रहा, परंतु भारतेंदु हरिश्चन्द्र के समान ही वह युगनिर्माता लेखक माना जाता है ।
अग्रेजो के मपर्क में वैज्ञानिक शोध के विकाम-युग में मुद्रणकला की प्रगति के साथ माहित्य के प्रचारात्मक अग की परिपुष्टि के काल में मराठी साहित्य का प्रवाह अव वेग से आगे वढा । गई अर्वशताब्दी में साहित्य का ऐसा कोई श्रगविशेष नही है, जिनमे उनने पर्याप्त कार्य न किया हो । अव आगे के काल खडमे नामो से न चल कर प्रवृत्तियां के विचार से चलना उपयुक्त होगा, क्योकि नाम तो इतने अधिक है कि नवका उल्लेख करना सभव नही हो सकता । केवल प्रमुख नामों का ही उल्लेख करेंगे । विष्णुशास्त्री चिपलूनकर को युयुत्सु गद्य-शैली को निभाकर आगे पत्रकारिता को परपरा चलाने वालो मे प्रमुख है
पत्र
'मुबारक' 'केसरी'
'काल'
'चाबुक'
पत्रकार
आगरकर
वाल गगावर तिलक
गि० म० पराजपे
अच्युत वलवत कोल्हटकर
इन स्वर्गगत पत्रकारो के पश्चात् जीवितो मे प्रमुख हैं । 'नवाकाल' के खाडिलकर, 'ज्ञानप्रकाश' के लिमये, 'चित्रा' के डॉ० ग० य० चिटनीम, 'महाराष्ट्र' के माडखोलकर, लोकमान्य के गाडगिल आदि ।
आगरकर की मान्यता थी कि राजनैतिक आन्दोलन को गौण स्थान देकर ममाज-सुधार पहिले से हो। तिलक बिलकुल इनसे उलटी बात कहते थे । परिणामत दोनो में बहुत काल तक विवाद रहा। ग्रागरकर दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे और फर्ग्युमन कालिज के मम्यापक | आपका लेखन अधिकाश प्रतिपक्षी पर वार करने के हेतु से हुआ, परन्तु हिन्दू समाज की कुरीतियों को दूर करने में आपके लेखो का बहुत बडा हाथ रहा है । तिलक 'गीतारहस्य', 'श्रोरायन', 'ग्राक्टिक होम इन दी वेदाज' नामक ग्रंथो के लेखक के नाते साहित्य में जैसे प्रसिद्ध हैं, भारतीय राष्ट्रीयता मग्राम के एक मेनानी के नाते राजनैतिक क्षेत्र में अविस्मरणीय है । दोनो ने जो परपरा पत्रसाहित्य में चलाई उसके अनुयायी श्राज भी माहित्य में मिल जावेगे और उसमें यह युग तो समाचार-पत्र का साहित्य --युग ही माना जाता है ।
गभीर गद्य के अन्य क्षेत्रों में, यथा इतिहास सशोधनात्मक, जीवनी, कोश-रचनात्मक, समालोचनात्मक, वैज्ञानिक, राजनैतिक प्रादि मराठी ने तिलकोत्तर काल में पर्याप्त प्रगति की है। यदि जयचन्द्र विद्यालकार और श्रोफा जी को हिंदी साहित्य नहीं भूलेगा तो गो० मा० मर देशाई, पारसनीस, खरे, राजवाडे आदि इतिहास सशोधको का कार्य भी मराठी मे श्रद्वितीय हैं । जीवनी साहित्य भी प्रचुर मात्रा मे समृद्ध है। तिलक की केलकर लिखित जीवनी, धर्मानद कौशावी का निवेदन, कर्वे की श्रात्मकथा, लक्ष्मीबाई तिलक की 'स्मृति चित्रे, दा० न० शिखरे की 'गावी जी की जीवनी' और अभी हाल में प्रकाशित और जन्त शि० ल० करदीकर का 'सावरकर - चरित्र' इम विभाग के ऐसे ग्रन्थ जो किमी भी साहित्य मे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करेगे । कोश-साहित्य पर तो एक स्वतंत्र लेख इसी ग्रथ में अन्यत्र है, दिया जा रहा है ।
साहित्य-ममालोचना मबबी कुछ महत्वपूर्ण आधुनिक ग्रथ निम्न कहे जा सकते है—
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