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प्रेमी-अभिनदन-प्रय वहुत-से लोग प्रेमीजी को केवल प्रकाशक के रूप में जानते है । कुछ लोग उन्हें हिन्दी के लेखक के रूप मे भी जानते हैं। उन्हें इस तरह जानने वाले सभी लोग उनकी सत्यशीलता, सद्व्यवहार, सदाचार, नम्रता आदि गुणो से इतने अधिक परिचित है कि इस सम्बन्ध में विशेष कहना वाहुल्य-मात्र है। फिर भी वैयक्तिक तथा नैतिक क्षेत्र में प्रेमीजी में इतने अधिक गुण है कि उनका पूरा और ठीक वर्णन करना कठिन है। प्रेमीजी अपनी मैकडो-हजारो की हानि विलकुल चुपचाप सह लेगे, पर किसी से लडना-झगडना कभी पसन्द न करेंगे। यदि कोई उन्हें जबरदस्ती किसी तरह की लडाई में घसीटने में समर्थ भी हुआ तो वे सदा जल्दी-से-जल्दी पीछा छुड़ाने का ही प्रयत्न करेंगे और विशेषता यह कि अपने परम शत्रु के लिए भी किसी प्रकार के अमगल या अहित का स्वप्न में भी विचार नहीं करते। उनके इस गुण का परिचय मुझे कई वार मिल चुका है। उनकी सज्जनता से गहे कोई कितना ही अनुचित लाभ उठा ले, पर किसी के अपकार करने का विचार भी वे अपने मन में नहीं ला सक्ते।
साधारणत प्रेमीजी के जीवन का यही सबसे बडा सार्वजनिक अग समझा जाता है, पर वस्तुत उनके जीवन का इससे भी एक बडा अग है, जिससे अपेक्षाकृत कम ही लोग परिचित है। प्रेमीजी उच्च श्रेणी के विचारशील विद्वान् है। विशेषत प्राकृत के वे अच्छे पडित है और अपना वहुत-सा समय अध्ययन और विद्या-विपयक अनुसन्धान मे लगाते है। उनमे यह कमी है कि वे अंगरेजी बहुत कम जानते है, पर अपनी इस कमी के कारण वे अपने कार्य-क्षेत्र में कभी किसी से पीछे नही रहते । जैन-इतिहास के वे अच्छे ज्ञाता है और इस विषय के लेख आदि प्राय लिखते रहते है। वे अनेक विषयो की नई खोजो के, जो प्राय अंगरेजी मे ही निकला करती है, विवरणो की सदा तलाश में रहते है और जब उन्हें इस तरह की किसी नई खोज का पता चलता है तब वे अपने किसी मित्र की सहायता से उसका वृत्त जानने का प्रयत्न करते है। उनका यह विद्या-प्रेम प्रशसनीय तो है ही, अनुकरणीय भी है।
प्रेमीजी में एक और बहुत वडा गुण है। वे कभी अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते-कभी प्रकाश मे नही पाना चाहते । हाँ, यदि प्रकाश स्वय ही उन तक जा पहुंचे तो वात दूसरी है। वे काम करना जानते है, परन्तु चुपचाप । अनेक विषयो का वे प्राय अध्ययन और मनन करते रहते हैं और कभी कुछ लिखने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की सामग्री भी एकत्र करते रहते है, पर जव उन्हें पता चलता है कि कोई सज्जन किसी विषय पर कुछ लिखन लगे है तब वे उनके उपयोग को अपनी सारी सामग्री अपनी स्वाभाविक उदारता से इस प्रकार चुपचाप उन्हें देते है कि किसी को कानोकान भी खबर नहीं होती।
प्रेमीजी के अनेक गुणो में ये भी वे थोडे-से गुण है, जिनके कारण वे बहुत ही सामान्य अवस्था से ऊपर उठते हुए इतने उच्च स्तर पर पहुंचे है।
बहुत ही दुख की बात है कि ऐसे सुयोग्य और सज्जन विद्वान का पारिवारिक तथा शारीरिक जीवन प्राय कष्टो से और वह भी बहुत बडे कष्टो मे सदा भरा रहा। हो सकता है कि ये शारीरिक और पारिवारिक कष्ट ही उनके स्वर्ण-तुल्य जीवन को तपाकर निखारने वाली अग्नि के रूप मे विधाता की भोर में प्राप्त हुए हो। अपनी गति वही जाने । बनारस ]