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'जैन-सिद्धान्त-भवन' के कुछ हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थ
श्री परमानन्द जैन जैन हिन्दी साहित्य अत्यन्त विशाल और महत्त्वपूर्ण है। भापा-विज्ञानियो को हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास-क्रम अवगत करने के लिए जैन हिन्दी साहित्य का ज्ञान प्राप्त करना परमावश्यक है। हिन्दी भाषा की जननी अपभ्रश भाषा मे जैनाचार्यों ने सहस्रो की सस्या में ग्रन्थ-रचना कर हिन्दी साहित्य के भडार को ममृद्धि-शाली वनाया है। पाश्चात्य विद्वान् डा० विन्टरनिज, प्रो. जेकोबी तथा अन्य कई विद्वानो ने इस बात का जोरदार शब्दो मे समर्थन किया है कि भारतीय माहित्य की श्री-वृद्धि में जैन लेखको का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। कहा गया है कि भारतीय साहित्य का शायद ही कोई अङ्ग वचा हो, जिसमे जैनियो का विशिष्ट म्यान न रहा हो। श्री प्रो० जगन्नाथ शर्मा ने अपने 'अपभ्रशदर्पण' में लिखा है'-"अपभ्रश' भापा मे प्रबन्ध काव्यो की भरमार है । अभी तक जो काव्य उपलब्ध हुए है, उनमे पाँच वडे-बडे प्रबन्ध-काव्य है । जैसे (१) भविसयत्तकहा (२) तिमट्टिमहापुरिस गुणालंकार (३) पाराधना (४) नेमिनाहचरिउ (५) वैरिसामिचरिउ। इनमे से भविसयत्तकहा वहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है। मालूम होता है कि हिन्दी के रामचरितमानस और पद्मावत जैसे जगत्प्रसिद्ध काव्यग्रन्यो का आदर्श ग्रन्य यही है। इन काव्यो में बहुत-सी वातो में समता है।"
उपर्युक्त पक्तियो से स्पष्ट है कि जैन अपभ्रश काव्य ग्रन्यो का तुलमी और जायसी जैसे हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवियो पर उल्लेखयोग्य प्रभाव पड़ा है। हमारे शास्त्रागारो मे सैकडो अप्रकाशित अपभ्रश भाषा के अन्य रखे हुए है। यदि ये ग्रन्थ प्रकाश में आ जाये तो हिन्दी साहित्य पर नया प्रकाश पडे ।
प्राचीन जैन हिन्दी साहित्य नवी और दसवी शताब्दी में पल्लवित और पुष्पित था। इस समय जैनाचार्यों ने अपभ्रश के साथ-साथ प्राचीन हिन्दी में भी कई रचनाएँ लिखी है । वीरगाथाकाल मे अनेक जैन मुनियो ने वीररस और शान्तरस की कविताएँ डिंगल भापा मे की। कई विद्वान् प्रसिद्ध ग्रन्थ खुमानरासो के रचयिता को भी जैन बतलाते है। जैन हिन्दी साहित्य के पद्य-ग्रन्थो के साथ-साथ गद्य ग्रन्य भी पन्द्रहवी शताब्दी के पहले से ही मिलते है । पडित हेमराज द्वारा विरचित पचास्तिकाय एव प्रवचनसार की वचनिकाएँ, पाडे रामलाल जी कृत समयसार की वालवोष टीका एव पार्वतधर्मार्थी की बनाई गई समाधितन्त्र की वचनिका आदि प्राचीन ग्रन्थ है और महत्त्वपूर्ण है। जैन शास्त्रागारो मे अनेक हिन्दी भाषा के साहित्यिक ग्रन्थ सशोधको एव प्रकाशको की प्रतीक्षा कर रहे है । 'अनेकान्त' मेंप्रकाशित सूची से पता चलता है कि पचायती जैनमन्दिर' (देहली) में २०२, सेठ कूचा' के जैनमन्दिर मे १३०, नये मन्दिर (देहली) मे १४० एव अमरग्रन्थालय इन्दौर मे १६ हस्तलिखित जैन हिन्दी माहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है। इन ग्रन्थो में से अधिकाश ग्रन्थ अप्रकाशित है।
'श्री जैन सिद्धान्त भवन आरा' में ३०२ हिन्दी साहित्य के हस्तलिखित ग्रन्थ है, जिनमे से मिथ्यात्वखडन, रूपचन्दशतक, चन्द्रशतक, हिन्दी नाममाला, ब्रह्माब्रह्मनिरूपण, पद्मपुराण छन्दोबद्ध, आनन्दधावक सन्धि, अजनासुन्दरिरास, गजसिंह गुणमालचरित्र, सप्तव्यसनचरित्र, बुद्धिप्रकाश, होमविधान, वालकमुडनविधि, ब्रह्मवावनी, पुण्याश्रयकथा छन्दोवद्ध आदि ग्रन्थ तो विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण एव उल्लेखनीय है । प्रस्तुत निवन्ध मे हम उपयुक्त ग्रन्थो का सक्षिप्त परिचय देने का प्रयत्न करेंगे।
'अपभ्रशदर्पण पृ० २६ । 'अनेकान्त' ४ किरण ।
देखिए 'अनेकान्त' वर्ष ४, किरण १० । 'अनेकान्त' वर्ष ४ किरण ६-७ ।